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क्या इथेनॉल भारत के किसानों के लिए वरदान है या अभिशाप?
यह सवाल आज हर गाँव, हर किसान, और हर नीति-निर्माता के सामने खड़ा है।
यह पुस्तक बताती है कि जब “ईंधन” और “अन्न” के बीच सीधी टक्कर होती है, तो असली दबाव किसान, जल-स्रोतों और खाद्य-सुरक्षा पर कैसे पड़ता है।
इस पुस्तक में आप जानेंगे—
✔ इथेनॉल प्लांटों द्वारा अनाज की बढ़ती खपत का असली प्रभाव
✔ क्यों ‘धान–मक्का–गन्ना’ अचानक सबसे विवादित फसलें बन रही हैं
✔ भूजल, पर्यावरण और स्थायी खेती पर छिपे हुए खतरे
✔ किसान, पंचायत और ग्रामीण समाज को किन बातों पर सतर्क रहना चाहिए
✔ कंपनियाँ क्या छिपाती हैं और EIA में क्या नहीं बताया जाता
✔ सरकार की नीतियाँ ज़मीनी हकीकत से कैसे टकराती हैं
✔ ग्रामीण समुदाय किन 1-पेज चेकलिस्ट और शर्तों के साथ अपने अधिकार सुरक्षित कर सकते हैं
यह पुस्तक किसानों, छात्रों, शोधकर्ताओं, पंचायत प्रतिनिधियों और आम नागरिकों के लिए समान रूप से उपयोगी है—
क्योंकि यह केवल समस्या नहीं बताती, बल्कि स्पष्ट समाधान, सुरक्षा-बंधन, और ग्रामीण हितों को बचाने के व्यावहारिक तरीके भी बताती है।
लेखन का उद्देश्य किसी उद्योग का विरोध करना नहीं, बल्कि यह समझाना है कि विकास तभी टिकाऊ है जब वह जल, जमीन, किसान और भोजन-सुरक्षा को नुकसान न पहुँचाए।
यह पुस्तक उन सभी के लिए है जो देश के कृषि-भविष्य को समझना चाहते हैं, और चाहते हैं कि विकास की रफ्तार गाँव को मजबूत करे, कमज़ोर नहीं।
“किसान और इथेनॉल—सच जानना हो तो ज़रूर पढ़ें”
“इस तरह की किताबें बहुत कम मिलती हैं जो सरकार की नीति, किसानों की समस्या और अर्थव्यवस्था के असली पहलू को इतनी स्पष्टता से सामने रखें।
लेखक ने बिना किसी पक्षपात के तर्क दिए हैं और कई नई बातें पता चलीं।
जरूर पढ़िए, यह आपकी सोच बदल देगी।”