You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution
कहानी 1993 की, जब अयोध्या के विवादित ढाँचा गिरा देने के बाद संसद में भगवा धारियों की गिनती बढ़ने लगी थी और इलाहबाद में भगवा रंग हावी था। कहानी शुक्ला परिवार की लाड़ली शशि शुक्ला की, जिसकी बदमाशियों और मुहफट व्यवहार के संगम के मल्लाह से लेकर बड़े गुरुजी, सब क़ायल थे, जिसका B.A. में अड्मिशन होना पूरी झूँसी की शान थी। महाशिवरात्रि का वो मेला जब शशि शुक्ला ने पहली बार उसको देखा, शंख बजाता वो अघोरी, जो शंख को ऊपर किए उसमें अपार प्राणो की शक्ति भर रहा था। उसे ताकती वो मानो खो गई थी ।उसकी यात्रा अब इलाहबाद यूनिवर्सिटी के कैम्पस से संगम घाट के शमशान तक पहुँच चुकी थी। इस प्रेम कहानी का ये आग़ाज़ भर था, उस प्रेम कहानी का जो आज भी दो संसारों को प्रेम से जोड़ने की बात करता है। एक ब्राह्मण की पुत्री का अघोरी से यूँ मोहित होना...
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book Shankhnaad.