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"कहता है कुरुक्षेत्र" एक समकालीन सामाजिक, राजनीतिक और दार्शनिक चेतना की काव्यात्मक दास्तान है — जिसमें डॉ. सत्यवान सौरभ ने 725 दोहों के माध्यम से आज के भारत की विडंबनाओं, विसंगतियों और विवेक को टटोला है।
नीरज जी की काव्यशैली में रचे गए ये दोहे केवल छंद नहीं, बल्कि समाज का आइना हैं — कभी करुण पुकार, कभी तीखा व्यंग्य, कभी विवेक का दीप। यह संग्रह आठ प्रमुख खंडों में विभाजित है, जो राजनीति, धर्म, किसान, शिक्षा, स्त्री, भ्रष्टाचार, मानवीय संवेदना और आत्मिक प्रश्नों पर बहुआयामी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
यह किताब हर उस पाठक के लिए है जो सोचता है, सवाल करता है, और बदलाव की कामना रखता है। हर दोहे में छिपा है एक युगबोध — जो पाठक को झकझोरता है, सुलगाता है और अंततः संवेदनशील बनाता है।
यह संग्रह क्यों पढ़ें?
नीरज शैली में समकालीन विषयों पर दोहों की अनूठी प्रस्तुति
8 खंडों में सामाजिक यथार्थ का गहन चित्रण
व्यंग्य, आलोचना और करुणा का संतुलित संगम
पाठकों को सोचने, प्रश्न करने और संवेदनशील बनने की प्रेरणा
"कहता है कुरुक्षेत्र" — जहाँ दोहे सिर्फ कविता नहीं, एक वैचारिक आंदोलन हैं।
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