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हार गए पापा (eBook)

Type: e-book
Genre: Literature & Fiction
Language: Hindi
Price: ₹100
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF, EPUB

Description

यह कहानी एक कवि की है जो अपनी नौकरी और अपने गाँव के बीच फंसा हुआ है। कविजी, जो अब चालीस की उम्र पार कर चुके हैं, दो बेटे और एक बेटी के पिता हैं। उनकी पत्नी सुंदर, समझदार और तेज़ है, लेकिन एक छोटी सी बात पर दोनों के बीच अनबन रहती है।

कविजी पिछले पंद्रह सालों से भारत सरकार के एक प्रतिष्ठान में काम कर रहे हैं, लेकिन इस नौकरी ने उन्हें कभी संतुष्टि नहीं दी। वे अक्सर नौकरी छोड़ने का विचार करते हैं, लेकिन आर्थिक मजबूरियों के कारण ऐसा नहीं कर पाते। उनकी आत्मा हमेशा अपने गाँव की ओर खिंचती है, जहाँ की यादें उन्हें जीवित रखती हैं।

गाँव की यादें उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। वहाँ के बाग, तालाब, कोयल की कूक, खेतों में काम करती मजदूरिनें, और मेले की रौनक उन्हें हमेशा आकर्षित करती हैं। लेकिन नौकरी की मजबूरियों ने उन्हें अपने गाँव से दूर कर दिया है।

कविजी का स्वभाव विद्रोही है, और वे अक्सर अपने हाकिम-हुक्कामों से टकराते रहते हैं। नौकरी ने उनके अध्ययन और लेखन के समय को छीन लिया है, और उनके स्वभाव में चिड़चिड़ाहट भर दी है।

फिर भी, वे सप्ताह में एक बार अपने गाँव जरूर जाते हैं और बीमारी का बहाना बनाकर कई बार लंबी छुट्टी भी ले लेते हैं। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वे अपनी पत्नी और बच्चों की सभी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाते।

यह कहानी एक व्यक्ति की है जो अपनी नौकरी और अपने गाँव के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन दोनों में से किसी में भी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो पा रहा है।

About the Author

अनिलचंद्र ठाकुर हिंदी, अंग्रेजी, मैथिली और अँगिका भाषाओं के साहित्यिक जगत में एक प्रतिष्ठित नाम हैं। पांच प्रकाशित पुस्तकों के साथ, उन्होंने भारतीय समाज के कमजोर, मौन और हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज़ बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके लेखन में अक्सर ग्रामीण जीवन की कठोर सच्चाइयों का चित्रण होता है, जहाँ निर्दोष और सरल, लेकिन अशिक्षित जनता अभी भी स्वतंत्रता के दशकों बाद भी स्थानीय ज़मींदारों और महाजनों द्वारा शोषित होती है—जो समाज के असली शोषक हैं।

Book Details

Publisher: Apoorva Chandram
Number of Pages: 171
Availability: Available for Download (e-book)

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हार गए पापा

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