शुक्ल जी के लेखन को फेसबुक पर पढ़ता रहा हूँ | बड़े तल्लीन भाव से आप सामान्य जनमन की भाव और भावना को व्यक्त करते हैं | इस पुस्तक में सहजता है और सरलता भी | बेवकूफ़ी भरे शीर्षक ने पहले तो कुछ अनमना किया पर जब पढने लगा तो लगा कि पूरा पढ़कर ही दम लूँ | शुक्ल जी के लेखन में कोई दिखावा नहीं है | कथन,पात्र,घटना और प्रसंग के साथ संवाद, वार्तालाप सब एकदम सीधे सीधे मनोभावों के साथ सीढ़ी सपाट शैली में | दरअसल आजकल जो भी सीधा है सपाट है और बिना बनावट और बुनावट के है वह बेवकूफ ही है | जबतक आप में यह क्षमता न हो कि आप दूसरे के लिए कोई न कोई दैहिक,मानसिक,आर्थिक ,नैतिक खतरा पैदा कर सकें तब तक आप हासिये पर रहेंगे | भारत के समाज में देखा गया है कि मांग करते हैं रेल पटरियां उखाड़कर,या रोड जाम करके अगर आप सीधी सपाट भाषा में चिट्ठी या ज्ञापन लिखकर कुछ मांगें तो कौन सुनेगा ,आगे बढ़ो ! यही मिलेगा | शुक्ल जी मुझे सदैव इस देश के सामान्य जन के लेखक लगे | इस पुस्तक की मुद्रित प्रति लेना चाहेंगे वह भी कम से कम एक दर्जनभर ! अपने मित्रों को देंगे पढने को | पोथी प्रकाशन की वेबसाईट अच्छी लगी !
Brilliantly written
Highly captivating. Binds you till the end. Great piece of writing, can't wait for more