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महाभारत में “कृष्ण कि अग्रपूजा” एक बहुत बड़ा प्रसंग है। युधिष्ठिर के द्वारा आयोजित राजसूय यज्ञ में जब अग्रपूजा के लिए श्री कृष्ण को चुना गया। जो चेदि नरेश शिशुपाल को उचित नहीं लगा, और उन्होंने श्री कृष्ण का घोर अपमान किया। श्री कृष्ण ने शिशुपाल की माता को उसके सौ गलतियों को क्षमा करने का वचन दिया था। जब तक शिशुपाल की सौ गलतियां पूरी नहीं हुई थी, तब तक श्री कृष्ण अपना अपमान सहते रहे, किंतु सौ गलतियां पूर्ण होने पर उन्होंने शिशुपाल को चेताया और प्रतिशोध की अग्नि में बहने के कारण शिशुपाल नहीं माना उसने 100 गलतियां पूर्ण होने के बावजूद उसने श्री कृष्ण को अपशब्द कहा। इस पर श्री कृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र निकाल कर शिशुपाल का वध किया। जिसके कारण शिशुपाल का समर्थन करने वाले लोगों के भीतर भय उत्पन्न हुआ| प्रस्तुत एकांकी नाटक “कृष्ण की अग्रपूजा” इन्हीं तथ्यों पर आधारित है |
Re: कृष्ण की अग्रपूजा (eBook)
हिंदी साहित्य में ख़त्म हो रहे पौराणिक नाटकों के प्रति समर्पण के दौरान यह नाटक उपयुक्त है | इस नाटक में मनोरंजन के साथ ज्ञान भी भरा हुआ है ,इसकी रचना वर्तमान समय में बढ़ रहे बाल एकांकी लिखने के प्रचलन को और तेज़ करता है |
इस नाटक में अभिनय की दृष्टिकोण से देखा जाये तो बाल रंगकर्मियों के अतिरिक्त वरिष्ठ व युवा रंगकर्मी भी मंचन कर सकते है |
आप यदि महाभारत के कई बड़े प्रसंगो के बारे में अच्छा ज्ञान नहीं रखते है ,तो भी आप इस पुस्तक को खरीद सकते है |