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हमारे मन में बहुत सारे विचार आते जाते रहते हैं, कभी लगते हैं अच्छे है, कभी लगते है बुरे है. कभी काम के लगते है, कभी बेवजह । इन पर कई बार तो हम विचार भी नहीं करते। इन्ही सभी बातों को ध्यान मे रखते हुये मैंने “ स्वयं पर निगरानी” करने का मन बनाया, और विश्वास करिये इसका परिणाम बहुत ही सुखद और लाभकारी रहा। मैंने सोचा , क्यूँ न ये विचार आप सब के साथ साझा किया जाए ताकि , यदि हममे से किसी एक को भी इससे फ़ायदा होता है, तो मेरा ये छोटा सा प्रयास सफल होगा । इस पुस्तक मे लिखी बातें मेरे अपने विचार नहीं है, ये एक प्रकार का संकलन है, जिसे मैंने विभिन्न पुस्तकों, प्रवचनों और आपसी वार्तालाप से लिया है, सिर्फ इसे अपने शब्दों में आपके सामने रख रहा हूँ।
लेखक द्वारा हर मनुष्यों के मन में उमड़ते हुए प्रश्नो को बड़ी ही सहजता से संकलित किया गया है। भाषा सरल एवं प्रवाह से युक्त है। लेखक ने शीर्षक बहुत ही सारगर्भित दिया है। मुझे लेखक का विचार मेरी ख़ुशी मेरे हाँथ में एवं स्वयं को समय क्योँ नहीं उत्कृष्ट लगा। प्रत्येक मनुष्य को खुश होने का अधिकार है एवं इसके लिए उसे किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए और इसके लिए खुद को समय देना उतना ही महत्त्वपूर्ण है ताकि हम अपने आप को भी समझ सके। श्री कृष्ण कुमार जी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें। भूपेंद्र मिरी , सिलीगुड़ी
Re: स्वयं की निगरानी ( Swayam ki nigrani) (e-book)
The book written is very nice.If we implement the thoughts written in this book then definitely one can change their life.
And really our mind is busy with unwanted things, we have to remove this.
Very very good book to clean the mind.