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कर्बला की बातें (eBook)

Type: e-book
Genre: Religion & Spirituality
Language: Hindi
Price: ₹0
Available Formats: PDF

Description

इमाम हुसैन ने ख़्वातीन को साथ लिया था ता कि करबला की दास्तान बयान करने वाले मौजूद रहें। उन्होंने इमाम जैनुलआबेदीन को अलालत के बावजूद साथ लिया ताकि वाक़या करबला को एक चश्म दीद मौरिख़ दस्तयाब रहे। उन्होंने ने अपनी क़ब्रे बनाये जाने के लिये ज़मीन खरीदी और उन्हीं को हबा कर दी जिन से ख़रीदी गयी थी। मगर उन्हें यह वसीयत कर दी कि जब मलाअना अपने कस्तगान को दफ़न करके चले जाये तो शहीदों की क़ब्रें बना दी जायें जो ज़ायरीन क़ब्रों की ज़ियारत करने को आये उन्हें इस की निशानदेही कर दी जाये और इन की तीन दिन तक मेहमानी की जाये। इन वसीयतों में यह हसरत पिन्हा नज़र आती है कि करबला का वाक़या अपनी सारी तफ़सीलात के साथ ता अबदाइला आबाद इंसानी हाफ़िज़ में महफूज़ रहे यही नहीं बल्कि रवायतों से यह पता चलता है कि जब इमाम मज़लूम रूख्सत आखिर के लिये खै़मा में तशरीफ़ लाये तो जनाब इमाम जै़नुल आबदीन अ0से अपनी मखसूस मुसीबतों का ज़िक्र करके यह वसीयत की थी कि जब वतन वापस जाना तो हमारे शियों को हमारा सलाम कहना और उन्हें हमारी मखसूस मुसीबतें बता कर उन्हें याद रखने की तलक़ीन कर देना पहली मुसीबत बंदिश आब की थी जिस के बारे में इमाम ने फ़रमाया था कि हमारे शियो से कहना कि जब ठन्डा पानी पीना तो हमारी प्यास को याद कर लेना। दूसरी मुसीबत जिस का ज़िक्र इमाम ने किया था वह यह थी कि गुरबत और मुसाफ़रत में इन की बे कसी का यह आलम था कि कोई सरहाने बैठ कर रोने वाला भी नहीं था चुनांचि इमाम ने अपने दोस्तों से कहलवाया कि जब किसी ग़रीबुलवतन या शहीद का हाल सुनना तो मुझपर रोना। तीसरी मुसीबत शहादत अली असग़र की थी जिस के लिये इमाम ने अपने शियों को यह पैग़ाम भिजवाया कि काश तुम सब के सब आशूर के दिन होते और देखते कि मैंने अपने बच्चे के लिये किस तरह पानी मांगा और इन ज़ालिमों ने किस तरह जवाब दिया। चैथी मुसीबत जिस का ज़िक्र इमाम ने किया वह पामाली लाशाहाये शोहदा की थी। इन मुसीबतों को अपने दोस्तों को याद कराने में इमाम का मक़सद सिवाये और कुछ नहीं था कि करबला वालों की याद ज़िन्दा रहे। इसी लिये जब हुकूमत वक़्त हुसैन के पसमान-दगान पर महरबान हुई और जनाब इमाम ज़ैनुल आबेदीन से यह पूछा गया कि आप यहां रहेंगे या मदीना जायेगे तो उन्होंने जनाब जै़नब के मशविरह से यह ख़्वाहिश ज़ाहिर की थी कि एक मकान ख़ाली करादिया जाये और कूफ़ा व शाम की औरतों को पुरसे की इजाज़त दे जाये और शोहदा के कटे हुये सर मुहैय्या करा दिये जायें कि बीबीयां इन पर खुल कर गिरया कर लें। यह अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि हुकूमत की मुहैय्या की हुई सहूलतों के साथ जो शाम में पहली बा क़ायदा मजलिस हुसैन के ग़म में मुनअकिद हुई उस में गिरया व बुका का क्या आलम रहा होगा। जब शोहदा के कटे हुये सर बारी-बारीबे ज़बान ज़ाकिरों की मानिन्द दास्तान करबला कह रहे होंगे और रोने वालों में ज़ैनब व उम्मे कुलशूम और अकबर व असग़र व क़ासिम की मायें और दिगर शोहदा से दिली लगाव रखने वाली मुखदरात असमत होगी।

About the Author

Justice Murtaza Husain born in 1920 has been Judge from Munsif to District Judge then he was elevated as High Court Judge as and then became Lok Ayukt UP. He was a good orator. This book is collection of his talks and published by him in Urdu.

Book Details

Number of Pages: 117
Availability: Available for Download (e-book)

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कर्बला  की  बातें

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