An unputdownable whodunnit thriller in the backdrop of a sleepy town which is gradually gearing up to become an industrial hub. Sub Inspector Sanjay Sinha is fresh in the cadre and unraveling the culprit behind a series of five murders in the gap of a few days can break or make his career. However, uppermost on his list of priority is not to book the unknown assailant but to decide whether to reveal the truth, as he stumbles upon it almost by accident, in the course of detection.
Jitendra Mathur's debut novel pivots around the ethics behind a crime, committed whether on impulse or premeditation. The moot question is what is at stake when murder becomes a habit - human worth or those timeless values that civilizations are founded on..
Read the novel to find the answer...
Re: Qatl Ki Aadat (e-book)
जुर्म समाज के लिए हानिकारक है । और उससे भी अधिक नुकसानदेह हैं वे जिनको जुर्म करने की आदत पढ़ चुकी हो । पर सोचने वाली बात यह है कि यह ख़तरनाक आदत भी समाज की ही देन नहीं है क्या ? वे तमाम लोग जिनकी नाकाम उम्मीदें समाज के ठेकेदारों के हाथों मसली जाती हैं, जिनकी कोई सुनवाई नहीं होती - न न्याय के दर पर न ही इंसानियत के कठघरे में – आख़िर कब तक चुप बैठें ? प्रतिवाद एक नागरिक का प्रजातंत्र में जन्मसिद्ध अधिकार माना गया है । किन्तु प्रतिवाद करते हुए कानून को अपने हाथ में ले लेना कहाँ तक जायज़ है ? क्या एक क़ातिल का मनस्तत्व केवल उसके कुकर्म की काली सियाही से ही ओतप्रोत होता है ? क्या उसमें कोई और पहलू नहीं हो सकता जो भिन्न हो, संवेदनशीलता से युक्त हो ? इन्हीं कठिन प्रश्नों के उत्तर अपने उपन्यास "क़त्ल की आदत" में उपन्यासकार जितेन्द्र माथुर ने तलाशे हैं।
पढ़ के देखें और सोचें ………।