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₹ 130
बच्चे देश की धरोहर हैं । हमारे देश का निर्माण कैसे होगा और हमारा भविष्य कैसा होगा, यह बच्चों के पालन-पोषण तथा उनकी मानसिकता पर ही निर्भर करता है । माँ-बाप की सारी आशाएँ उन्ही पर टिकी रहती हैं । परन्तु आजकल का समाज बच्चों को क्या मूल्य दे रहा है, इस बारे में चिंतित होना आवश्यक है । एक तरफ एक्ल परिवारों का चलन, जिनमें नाना-नानी, दादा-दादी तथा अन्य रिश्तों का अभाव रहता है, तथा दूसरी तरफ किताबों का बोझ रहता है। माता-पिता भी अपने कामों में बहुत व्यस्त रहते हैं । फिर टेलीविजन का चलन । यह सब मिल कर बच्चों को सही दिशा दिखलाने के बजाय, राह भटका सकते हैं । उनको सही मूल्यों का ज्ञान कौन देगा ? उनके मन में उपजे कौतुहल का निदान कौन करेगा ? इस सब के बारे में आज के यंत्र-चालित जीवन में सोचने की किसको फुर्सत है । इसीलिये...
Re: देश के बच्चे - मेरी कविताएँ (e-book)
आदरणीय डॉ अनिल चड्ढा जी का यह संकलन बहुत ही बढ़िया प्रयास है. इस की कविताएँ सुंदर, सरस और सलिल है. यह बच्चों के गुनगुनाने योग्य है. इस का स्वागत...