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Type: e-book
Genre: Poetry
Language: Hindi
Price: ₹300
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

महाकवि तुलसीदास ने मानस में कविता की उत्पत्ति के विषय में लिखा है :
ह्रदय-सिंधु मति-सीप समाना I
स्वाति शारदा कहहिं सुजाना II
जब बरषइ बर बारि विचारू I
होहिं कवित मुक्तामणि चारु II

प्रस्तुत कृति बाल्यकाल प्रभृति ,समय की उपादेयता ,सन्दर्भ अनुकूलन,अभिभावकों ,शिक्षकों और सहृदयों की प्रेरणा एवं प्रोत्साहन के प्रतिफल स्वरुप उत्पन्न हुई मुक्तामणियों को एक सूत्र में पिरोने का प्रयास मात्र है|वस्तुतः यह स्वान्तः सुखाय रचित तुकबंदियों का 'कलरव' ही है |

पुनरपि इस कलरव की एक कूक भी कदाचित ह्रदय को स्पर्श कर जाए तो यह पाठक की उदारता एवं साधुता का ही परिचय होगा

विज्ञजनों के हेतु तो यही निवेदन है :
जो बालक कह तोतरि बाता I
सुनहिं मुदित मन पितु अरु माता ||

About the Author

इस रचना समूह 'कलरव' के कवि डॉ सुशील कुमार उपाध्याय हैं जिनका उपनाम 'विमल' है
कवि प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश के मूल निवासी हैं और व्यसाय से चिकित्सक तथा 'श्वास रोगों' के
के विशेषज्ञ हैं
कवि 'विमल' की ,बाल्य काल प्रभृति हिंदी साहित्य में रूचि रही है और कविताओं से विशेष लगाव रहा है
छात्र जीवन से ही सम-सामयिक विषयों पर अपने विचारों को कविता रूप में प्रकट करते रहे हैं
इन्हीं रचनाओं को पुस्तकाकार रूप देकर हिंदी साहित्य में अभिरुचि रखने वाले पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का यह लघु प्रयास है

Book Details

Number of Pages: 190
Availability: Available for Download (e-book)

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कलरव

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