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प्रकृति की शाश्वत व्यवस्था है कि जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु अवश्य होगी । जिसका उत्थान हुआ है,उसका पतन भी अवश्य होगा।
भारत मे सन १५२६ ईसवी मे स्थापित मुग़ल सत्ता का पतन औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात होना प्रारम्भ हो गया था तथा सन १८०३ ईसवी मे इस शक्तिशाली वंश के सम्राट शाहआलम सानी को बड़ी दयनीय अवस्था मे ईस्ट इंडिया कंपनी से गुज़ारा-भत्ता लेकर जीवन यापन करने को विवश होना पड़ा था।
ऐसा क्यों व किन परिस्थितिओ मे हुआ? इस पर प्रस्तुत पुस्तक 'बदनसीब बादशाह शाहआलम सानी' मे प्रसिद्व इतिहासकार राजकिशोर शर्मा 'राजे' ने बखूबी प्रकाश डाला है ।
एक बेहतरीन पुस्तक इसको पढ़कर नए तथ्यों की जानकारी हुई
एक बेहतरीन पुस्तक इसको पढ़कर नए तथ्यों की जानकारी हुई । इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती कि लाल किले में रहने वाले मुगल बादशाह ऐसे भी थे जो अपने बच्चों को दो वक्त का खाना भी नहीं दे पाते थे और जिनके पास पहनने के लिए दूसरा कोर्ट भी नहीं था । शाह आलम साहनी की आंखें तो उसी के मीर बक्शी गुलाम कादिर ने निकालते हुए उसकी बेदनाथ पर वह अत्याचार किए जिसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती ।