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मानव जब तक इस धरती पर रहता है, अविराम गति से भ्रमण करता रहता है, भटकता रहता है, जिस समय वह इस दुनिया के घनघोर कंटक पूर्ण जंगल रूपी धरती पर उतरता है, उस समय उसके हृदय में ईश्वर प्राप्ति का उद्देश्य होता है, इसके लिए उनके हृदय में संकल्प होता है। जब वह कुछ अपरिचितों के बीच अपने को पाता है, तो यह अपरिचित लोग अपने जैसे लगने लगते हैं, उद्देश्य और संकल्प उसके हृदय से मिट जाता है। वह भौतिक पदार्थों को एकत्रित करने में लग जाता है। जीवन में संध्या आने वाली है, मालूम है फिर भी बेसुध होकर मित्रों- सगे-संबंधियों के बीच मग्न होकर भटकता रहता है, और ईश्वर का प्रेम प्रकाश में लीन होने में असफल हो जाता है। गीता-रश्मि की किरण हृदय को स्पर्श कर ईश्वर के अमर प्रकाश की ओर जाने को प्रेरित करने वाली है। यह मानव जीवन में, धरती पर पसरे हुए अंधकार को मिटा देने के लिए अदभुत क्षमता वाली किरण बिखेरने को प्रस्तुत है।
पृथ्वी पर असंख्य राही अनगिनत
राहों पर अविराम गति से
चलते आ रहे हैं।
कहाँ जाना है यह स्मरण नहीं
कहाँ से चले बिल्कुल याद नहीं है।
दिशा का भी ज्ञान नहीं
केवल चलते रहते हैं।
दिन में चल रहे हैं या रात में
यह भी उन्हें मालूम नहीं।
ये देखते भी नहीं हैं।
बड़े ही विचित्र बटोही हैं ये सब।
इन बटोहियों की ऐसी स्थिति देखकर इस
गीता रश्मि की
रचना की गयी है ।
रास लाल
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