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अनंत अपार असीम आकाश-2 (eBook)

"अनंत आकाश-2"
Type: e-book
Genre: Poetry
Language: Hindi
Price: ₹75
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

शब्दों पर ना जाये मेरे, बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे, उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में, मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, उसे अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो, या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे, बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत, या समझो इसे फ़साना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
फिर आप चाहे जब परख लें, अपनी कसौटी पर मुझे।
मै सदा मै ही रहूँगा, आप चाहे जो रहें।
मुझको तो लगते है सुहाने, इंद्र धनुष के रंग सब।
आप कोई एक रंग, मुझ पर चढ़ा ना दीजिये।
मै कहाँ कहता कि मुझमें, दोष कोई है नहीं।
आप दया करके मुझे, देवत्व ना दे दीजिये।
मै नहीं नायक कोई, ना मेरा है गुट कोई।
पर भेड़ो सा चलना मुझे, आज तक आया नहीं।
यूँ क्रांति का झंडा कोई, मै नहीं लहराता हूँ।
पर सर झुककर के कभी, चुपचाप नहीं चल पाता हूँ।
आप चाहे जो लिखे, मनुष्य होने के नियम।
मै मनुष्यता छोड़ कर, नियमो से बंध पाता नहीं।
आप भले कह दें इसे , है बगावत ये मेरी।
मै इसे कहता सदा , ये स्वतंत्रता है मेरी।
फिर आप चाहे जिस तरह, परख मुझको लीजिये।
मै सदा मै ही रहूँगा, मुझे नाम कुछ भी दीजिये।
हो सके तो आप मेरी , बात समझ लीजिये।
यदि दो पल है बहुत, एक पल तो दीजिये।

विवेक मिश्र 'अनंत'

About the Author

शब्दों पर ना जाये मेरे, बस भावों पर ही ध्यान दें।
अगर कहीं कोई भूल दिखे, उसे भूल समझकर टाल दें।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में, मै शब्दों में नहीं रहता हूँ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, उसे अपनी जबानी कहता हूँ।
ये प्रेम-विरह की साँसे हो, या छल और कपट की बातें हो।
सब राग-रंग और भेष तेरे, बस शब्द लिखे मेरे अपने है।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत, या समझो इसे फ़साना।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना।
फिर आप चाहे जब परख लें, अपनी कसौटी पर मुझे।
मै सदा मै ही रहूँगा, आप चाहे जो रहें।
मुझको तो लगते है सुहाने, इंद्र धनुष के रंग सब।
आप कोई एक रंग, मुझ पर चढ़ा ना दीजिये।
मै कहाँ कहता कि मुझमें, दोष कोई है नहीं।
आप दया करके मुझे, देवत्व ना दे दीजिये।
मै नहीं नायक कोई, ना मेरा है गुट कोई।
पर भेड़ो सा चलना मुझे, आज तक आया नहीं।
यूँ क्रांति का झंडा कोई, मै नहीं लहराता हूँ।
पर सर झुककर के कभी, चुपचाप नहीं चल पाता हूँ।
आप चाहे जो लिखे, मनुष्य होने के नियम।
मै मनुष्यता छोड़ कर, नियमो से बंध पाता नहीं।
आप भले कह दें इसे , है बगावत ये मेरी।
मै इसे कहता सदा , ये स्वतंत्रता है मेरी।
फिर आप चाहे जिस तरह, परख मुझको लीजिये।
मै सदा मै ही रहूँगा, मुझे नाम कुछ भी दीजिये।
हो सके तो आप मेरी , बात समझ लीजिये।
यदि दो पल है बहुत, एक पल तो दीजिये।

विवेक मिश्र 'अनंत'

Book Details

Number of Pages: 51
Availability: Available for Download (e-book)

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अनंत अपार असीम आकाश-2

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