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₹ 200
पुस्तक में कोविड-१९ वैश्विक महामारी के विभिन्न पक्षों की गहन विवेचना की गयी है : निष्कर्ष है कि यह राजनैतिक कुटिलता एवं असीमित लोभ की व्यावसायिकता का दुष्परिणाम है । भारत के सन्दर्भ में ईस्ट इंडिया कंपनी से आरम्भ आर्थिक और बौद्धिक गुलामी का दौर आज तक जारी है : डिजिटल इंडिया , आत्मनिर्भर भारत अभियान , तथाकथित कृषि सुधारों के लिए ५ जून , २०२० को लाये अध्यादेश इसी की निरंतरता हैं । कोरोना महामारी ने भारत में व्याप्त पाखंड को उजागर किया है । आत्मानुभूति अथवा स्व की स्मृति भारत के लिए अभीष्ट है जो व्यक्ति से लेकर समाज के हर क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन से ही संभव है - यह पुस्तक का मुख्य सन्देश है । अंतिम अध्याय में ऊर्जा आधारित आधुनिक विकास के स्थान पर एन्ट्रापी और एक्शन आधारित विकास की क्रांतिकारी अवधारणा दी गयी है ।
पुस्तक के अंदर से : "पाखंड में अंदरूनी शक्ति नहीं होती , सत्यनिष्ठा से दी गयी एक चुनौती भी पाखंड को क्षणमात्र में ढहा देती है । -- क्रांति परास्त नहीं होती , क्रांतिकारी क्लांत नहीं होता । असत्य से सत्य की और चलना ही क्रान्ति है ।"
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