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अभिलाषा" पुनर्जन्म की"- लेखक की वर्षों से दबी अंतर्वेदनाओं का प्रतिबिम्ब प्रतीत होता है। लेखक श्री बाबूलाल तिवारी के निश्छल प्रेम और उनके जीवन के प्रारम्भ में उनके प्रथम प्यार के अनायास खो जाने से उत्पन्न हुई पीड़ा का इस पुष्तक में अति मार्मिक ढंग से चित्रण किया है। मधुर स्मृतियाँ आज भी लेखक के हृदयपटल पर स्पष्ट हैं जैसे घटना कल की हो। लेखक ने बड़े मार्मिक और सरल ह्रदय से घटनाओं का वर्णन किया है। पुष्तक को पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है लेखक ने अपना सारा जीवन उन्हीं सुनहरी यादों के सहारे विताया जिसकी उसे आज भी तलाश है और जिसे पुनः प्राप्त करने के लिए पुनर्जन्म की अभिलाषा लेखक के ह्रदय में जागृत हुई है।
लेखक एक अत्यँत गरीब परिवार से होने के बावजूद उसने किस प्रकार सत्य और अपने सिद्धांतों पर चल जीवन की वास्तिविकता का ईमानदारी से सामना किया तथा अपने लक्ष्य को प्राप्त किया वो एक मिशाल है खासकर उनलोगों के लिए जो ये समझते हैं और जिनका ये विश्वास है की व्यवस्था से निपटने के लिए घूसखोरी ही एकमत्र उपाय है।
लेखक ने जिस निश्छल प्रेम की अनुभूति जीवन के चंद दिनों के अपने प्रथम जीवन साथी के सानिध्य में मह्शूश की थी उसी की तलाश में उसकी व्यथा और वेदना तथा उस अनुभूति की प्रस्तुति यह पुष्तक है जिसे प्राप्त करने की अभिलाषा ही पुनर्जन्म का कारण है। घटनाओं का वर्णन तथा प्रस्तुतीकरण पाठकों को भावविभोर कर देगा तथा उन्हें भी स्वयं की यादों का विम्ब मिलेगा ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है । पुस्तक पढ़ते समय अनायास ही वर्षों पुरानी जगमोहन की गए हुई पंक्तियाँ ओठों से निकल पड़ी :
मन का साथी सब कुछ लेकर बिछुड़ गया, नींद के बदले याद है आती भूली हुई कहानी
मेरी आँखें बनी दीवानी ,पहले लगाई आग ह्रदय में फिर बरसाए पानी।
ईश्वर से प्रार्थना है की लेखक की अभिलाषा पूरी हो
नवनीत द्विवेदी
SENIOR ADVOCATE
MUMBAI HIGHCOURT, NAGPUR BENCH
Re: अभिलाषा पुनर्जन्म की (e-book)
अभिलाषा" पुनर्जन्म की"- लेखक की वर्षों से दबी अंतर्वेदनाओं का प्रतिबिम्ब प्रतीत होता है। लेखक श्री बाबूलाल तिवारी के निश्छल प्रेम और उनके जीवन के प्रारम्भ में उनके प्रथम प्यार के अनायास खो जाने से उत्पन्न हुई पीड़ा का इस पुष्तक में अति मार्मिक ढंग से चित्रण किया है। मधुर स्मृतियाँ आज भी लेखक के हृदयपटल पर स्पष्ट हैं जैसे घटना कल की हो। लेखक ने बड़े मार्मिक और सरल ह्रदय से घटनाओं का वर्णन किया है। पुष्तक को पढ़ने से ऐसा प्रतीत होता है लेखक ने अपना सारा जीवन उन्हीं सुनहरी यादों के सहारे विताया जिसकी उसे आज भी तलाश है और जिसे पुनः प्राप्त करने के लिए पुनर्जन्म की अभिलाषा लेखक के ह्रदय में जागृत हुई है।
लेखक एक अत्यँत गरीब परिवार से होने के बावजूद उसने किस प्रकार सत्य और अपने सिद्धांतों पर चल जीवन की वास्तिविकता का ईमानदारी से सामना किया तथा अपने लक्ष्य को प्राप्त किया वो एक मिशाल है खासकर उनलोगों के लिए जो ये समझते हैं और जिनका ये विश्वास है की व्यवस्था से निपटने के लिए घूसखोरी ही एकमत्र उपाय है।
लेखक ने जिस निश्छल प्रेम की अनुभूति जीवन के चंद दिनों के अपने प्रथम जीवन साथी के सानिध्य में मह्शूश की थी उसी की तलाश में उसकी व्यथा और वेदना तथा उस अनुभूति की प्रस्तुति यह पुष्तक है जिसे प्राप्त करने की अभिलाषा ही पुनर्जन्म का कारण है। घटनाओं का वर्णन तथा प्रस्तुतीकरण पाठकों को भावविभोर कर देगा तथा उन्हें भी स्वयं की यादों का विम्ब मिलेगा ऐसा मेरा व्यक्तिगत अनुभव है । पुस्तक पढ़ते समय अनायास ही वर्षों पुरानी जगमोहन की गए हुई पंक्तियाँ ओठों से निकल पड़ी :
मन का साथी सब कुछ लेकर बिछुड़ गया, नींद के बदले याद है आती भूली हुई कहानी
मेरी आँखें बनी दीवानी ,पहले लगाई आग ह्रदय में फिर बरसाए पानी।
ईश्वर से प्रार्थना है की लेखक की अभिलाषा पूरी हो
नवनीत द्विवेदी
SENIOR ADVOCATE
MUMBAI HIGHCOURT, NAGPUR BENCH