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Parlok Me Satellite

Parlok Me Satellite

(4.50 out of 5)

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2 Customer Reviews

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sakhajee 8 years, 11 months ago

Re: Parlok Me Satellite (e-book). एक मित्र द्वारा भेजा गया रिवयू

व्यंग्य उपन्यास ''परलोक में सैटेलाइट'' हास्य व्यंग्य का जीवंत नायक है। इसके जरिए लेखक ने समाज के हर वर्ग को संबोधित किया है। गहन विज्ञान और मनोविज्ञान का इस्तेमाल नजर आता है। कथानक की शुरुआत ही बुंदेलखंड के एक ऐसे पात्र से होती है, जो अपनी कुर्सी बचाने और उसे जस्टीफाई करने के लिए अपने मातहतों को तौलता रहता है। व्यंग्य सरकारी दफ्तरान में ''साहबवाद'' को भी एड्रेस करता है। सबसे मौजू और महत्वपूर्ण व्यंग्य के भीतर छुपा वह विचार है, जिसमें लेखक दुनियाभर की स्पेस एजेंसियों के अलग-अलग मिशनों पर कटाक्ष करता है। वह यहां सार्वभौमवाद जैसे अतिगंभीर टाॅपिक पर भी पाठक से वार्तालाप सा करता हुआ हास्य अंदाज में चर्चा करता है।
भूखे देश में अरबों रुपये विफल सैटेलाइट पर खर्चने के बाद स्पेस एजेंसी के डायरेक्टर की राजनैतिक खुरफातों का व्यंग्य में जीवंत चित्रण है। गंभीर से गंभीर बात बेहद सरल और हास्य के जरिए ऐसे कर दी गई है, जैसे पाठक से आमने-सामने तादातम्य बिठाकर बात की जा रही हो।
सैटेलाइट का परलोक से दृश्य भेजना। पृथ्वी के मानव समाज की प्रतिक्रियात्मकता अद्भुत है। कई बातें ऐसी हैं, जिनकी बहुत ढंग से व्याख्या की जा सकती है। कई नये शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। मुद्दों पर विस्तृत राय है।
व्यंग्य दो कारणों से जरूर पढ़े। पहला तो एक संपूर्ण व्यंग्य, जहां कहीं भी आपको गंभीर होने की जरूरत नहीं और एक बार भी बचकाना या हल्कापन नहीं लगेगा। दूसरा कारण इसकी शैली है। पाठक को कहीं भी उलझना नहीं पड़ता। एक पैरा सवाल खड़ा करता तो दूसरा ही पैरा जवाब दे देता है।
व्यंग्य की दो खामियां भी हैं। पहली तो यह अश्लील गालियों से गुरेज नहीं करता दूसरी इसमें किसी तरह की व्यावसायिकता की परवाह नहीं की गई। इससे प्रकाशक खोजने में दिक्कत हुई। वहीं इतनी स्पष्टवादिता बरती गई है, कि कोई भी सरकारी पुस्तकालय इस विस्फोटक को अपने यहां रखने से भी गुरेज कर रहा है।

gyanji 8 years, 11 months ago

Re: Parlok Me Satellite (e-book)

व्यंग्य उपन्यास च्च्परलो· में सैटेलाइटज्ज् ·ी पृष्ठभूमि आधुनि· अंतरिक्ष विज्ञान और पौराणि· गल्प ·ा मिश्रण है, जिसमें स्पेस एजेंसी द्वारा प्रक्षेपित सैटेलाइट ऑर्बिट ·े बाहर जाने ·े बाद आने वाले सामाजि· राजनैति· और व्यवहारि· बदलावों ·ो हास्य ·े रूप में बखूबी पिरोया गया है। यह व्यंग्य उपन्यासों में श्रेष्ठतम है। इस·ी लेखनशैली और ·ल्पनाशीलता बेजोड़ है। लेख· ·ा यह पहला उपन्यास है, ले·िन इस·में दूरगामी परिपक्वता झल·ती है। ए· यमलो· ·ा सीन पूरे संसार ·ो ·िस तरह से बदल डालता है, यह उपन्यास में समझाने ·ी ·ोशिश ·ी गई है। इस·े बाद जब पृथ्वी पर ईश्वरीय रहस्य बेपर्दा होने से रो·ने ·े लिए दुनिया ·े मौजूं राज परिवर्तन ·े विभिन्न फॉर्मेटों ·ो आजमाया जाता है। इनमें माओ, नेपोलियन, अरविंद ·ेजरीवाल, रामराज, गद्दाफी, आईएसआईएस सब·ो ट्राइ ·रने ·े बाद ए· ही रास्ता बचता है, जो अंतरिम तौर से अपनाया जाता है, वह है सतयुग। उपन्यास ·ा ·थान· ए·दम नया और ताजा है। पढ़ते हुए ·हीं भी ऐसा नहीं लगता ·ि इसमें ·हीं भी ·च्चापन या ·हानी में ब्रे· है। सतत बहती जाती है।
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