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प्रतिदिन हम आप ज्योहीं अखबार के पन्ने पलटते हैं पाते हैं अखबार का दो से तीन पेज घरेलू हिंसा के खबरों से पटा रहता है, कहीं पति ने पत्नी का क़त्ल किया, कहीं पत्नी ने पति का. कहीं दोनों परिवार एक दूसरे पर केस डाल दिया, तो कहीं पत्नीं अपने बच्चों समेत ट्रेन से कट गई. ज्यादातर मामले पति पत्नी के संबंधों से जुड़ा रहता है, चाहे कारण दहेज हो या अन्य. टीवी न्यूज चैनल भी इसी तरह की ख़बरें दिखाते रहते हैं. आप समझ लीजिए ये घटनाएं अचानक नहीं होती, इसकी पृष्ठभूमि कई महीने या साल पहले लिखी गयी होती हैं.
दूसरी बात यह भी है शादी करने से पहले दोनों परिवार ने इस तरह की घटनाओं की कल्पना तक नहीं की हुई होती हैं, फिर भी आज इस तरह की घटनाएँ रोज घट रही है. मुझे लगता है इन सब घटनाओं के पीछे पति, पत्नी और इनके परिवार का अहं काम करता हैं, साथ ही आपसी बातचीत की कमी के कारण और समस्या को कोई समस्या न समझने के कारण दोनों पक्ष यही वहम में रहता है कि समस्या अपने आप सुलझ जायेगा. जबकि ऐसा कभी नहीं होता. और धीरे धीरे समस्या इतना विकराल हो जाता है, परिवार तो टूटता ही है धन-जन की भी क्षति होती है हालांकि दोनों परिवार का मकसद यह कतई नहीं रहता है. फिर भी यह हकीकत है. आज परिवार में जो बिखराव आ रहा है उसके लिए जिम्मेवार है एकाकी परिवार , बड़े बुजुर्गों का आदर सत्कार की कमी, मानसिक तनाव तो कहीं दहेज. आज की कुछ महिलाएं या यों कहें बहुएँ बिना कर्तव्य किए अधिकार की बात करती हैं जबकि कुछ पुरुष बिना कोई गलती के सिर्फ अपनी सत्ता मनवाने के लिए महिलाओं पर ज्यादितियाँ करता है.तो कुछ महिलाएं हमारे सदियों पुरानी समाज के पितृसत्तात्मक पद्धति को चुनौती देती हुई अपने अहंकार के कारण पति का महत्व ही भूल जाती है, फलतः वे अपनी परिवार के विखराव को नहीं रोक पातीं, समझ में जब आता है तबतक बहुत देर हो चुकी होती है, जबकि दूसरी तरफ जिसके पति शराबी और जुआरी है, वह महिला अपने माँ –बाप को भी अपनी परेशानियां नहीं बता पाती. इस उपन्यास के माध्यम से उन लोगों को रास्ता दिखाने का काम किया गया है जिनके नाम अखबार में आने वाले ही हैं उपरोक्त कारणों से. जिनके परिवार में बेटे-बहू, बेटी-दामाद ऐसी परेशानियाँ झेल रहे हैं, जिनकी लड़की सालों से मायके में पति को छोड़कर बिना तलाक की रह रही है, न वे लड़की के ससुराल वाले से बात करते हैं और न ही ‘तलाक’ के लिए कोर्ट में अर्जी नहीं डालते हैं लंबे समय तक केस में उलझने के डर से और समाज में बदनामी के डर से. इससे दोनों परिवार परेशान रहता हैं, लड़की-लड़का कानूनन दूसरी शादी नहीं कर सकता, लड़की आजीवन पति द्वारा “भरण-पोषण भत्ता” से महरूम रह जाती है, पूरी तरह पिता पर आश्रित हो जाती है. यदि दुर्घटनावश पिता की मृत्यु हो जाय, तो उस लड़की और उसके बच्चों पर क्या बीतेगी, अकल्पनीय है. कभी कभी यह भी सुनने को मिलता है कि लड़की के माता पिता भी, खासकर जिनके एक ही सन्तान होती है, अपने लड़की को अपने पास रखने के लोभ में अपनी बात मनवाने के लिए उसके पति से झगड़ा करवाने में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करते हैं, बिना इसके परिणाम को सोचे.
इस उपन्यास में एक संयुक्त परिवार की कहानी है जिसका बड़ा लड़का, सुबोध जो एक सरकारी नौकरी में है, अपने पूरे परिवार को साथ ले चलना चाहता है हालाँकि पिता के पेंशनर होने के कारण इसके पैसे की कम ही जरुरत पड़ती है, फिर जब कभी जरुरत होती है, पूरा करने की कोशिश करता है, इसके छोटे भाई-बहन पढाई कर रहे हैं, इसकी पत्नी,गीता को लगता है कि यह अपना सारा पैसा घर पर ही दे देता है, उसे तथा उसके बच्चों को कुछ नहीं मिलता है, इसी बातों को लेकर अक्सर घर में झगड़ा होने लगा. इनके झगड़े से दोनों परिवार परेशान तो रहता है लेकिन कोई समस्या को सुलझाने के किए कोई कदम नही उठाया. धीरे-धीरे पति पत्नी के सम्बन्ध और खराब होती गयी. हालाँकि दोनों एक छत के नीचे रह रहे थे, बच्चो के कारण. अनेक बार दोनों के बीच मार-पीट की नौबत भी आ जाती है, दोनों एक दूसरे को तलाक और आत्म-हत्या की धमकी देता है, इसी तरह पति-पत्नी में आरंभिक बहस, कब लगातार तकरार और धमकी में बदल गया दोनों परिवारों में से किसी को नही पता चला, या यों कहें कि किसी ने जानने की कोशिश नहीं की. इस बीच दोनों में दाम्पत्य सम्बन्ध भी खत्म हो गया, दोनों पति-पत्नी अपनी जवानी का महत्वपूर्ण समय एक दुसरे से झगड़े में बर्बाद कर दिया. अंततः सुबोध अपनी पत्नी को तलाक देने का विचार से एक वकील से मिला, किन्तु ज्यादा समय तथा दोनों परिवार के केस में उलझने के डर से तलाक लेने का एक अलग तरीका अपनाया, गीता के भाई राजेश को विश्वास में लेकर दोनों परिवार की मीटिंग बुलाई गयी. दोनों परिवार द्वारा एक एक वकील हायर किया गया, अपने परिवारों में से ही एक जज चुना गया, और उपलब्ध कानून के आधार पर बच्चों तथा गीता के लिए उचित मुआवजा और ‘भरण-पोषण खर्च’ तय करने के बाद तलाक को सामाजिक मान्यता प्रदान किया गया. फिर “फैमिली कोर्ट” द्वारा क़ानूनी तलाक का रूप प्रदान किया गया. इसप्रकार समय और पैसे की बर्बादी भी नहीं हुई, और बच्चे को नाना-नानी, दादा-दादी सभी का प्यार मिलता है, सिर्फ दुःख है कि उसके मम्मी पापा एक साथ नहीं रहते. यदि तलाक सिर्फ कोर्ट द्वारा होता तो यह माहौल बच्चों को कभी नहीं मिलता. इस उपन्यास में हिंदू धर्म में तलाक से संबंधित विभिन्न क़ानूनी धाराओं का भी वर्णन किया गया है|
कहा जाता है, “मुंडे – मुंडे मति भिन्ना” अतः इसकी सम्भावना बराबर बनी रहती है कि पति पत्नी का विचार न मिलता हो, किन्तु जब पति पत्नी मानसिक रूप से एक दूसरे से घृणा करने लगे, तो वे एक छत के नीचे कब तक और कैसे रह सकते हैं. तलाक बुरा नहीं है, उसकी प्रकिया बुरी है, उसके आगे पीछे का समय असहनीय होता है. फिर लंबी प्रकिया के बाद दोनों परिवार टूट जाता है, एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में. इस उपन्यास के माध्यम से तलाक की प्रकिया को आसान बनाने की प्रयास किया गया हैं. किसी ने ठीक ही कहा है “ खुशी बाँटने के लिए हजारों लोग आपको मिल जाएंगे लेकिन दुःख में आप के साथ आसूँ बहाने वाले शायद ही मिल पायें.”
आशा है यह उपन्यास समाज को सन्देश पहुँचाने में कामयाब रहेगा और कुछ परिवार को टूटने से बचाने में सहायक होगा. कृपया इस उन्यास को पढ़े और अन्य को भी बताएं और टूटते परिवार और समाज को संबल प्रदान करें. धन्यवाद |
चंद्रगुप्त शौर्य
ग्राम+पो.-अमरपुरा, नौबतपुर, पटना (बिहार)
Chandragupt.shaurya@gmail.com
Mai evam meri wife sushma "रिसते रिश्ते बिखरते परिवार" kitab ko lagatar 3 ghante computer screen ke samne baith kar padh dali. aisa laga ki 3 hrs ke movie dekhkar uthe hai. 3 hrs me 10 salo ka ghatnakram aankho ke samne tarotaja ho gya.puri ghatnakram ko bakhubi jorkar kafi rochak andaj me prastut kiya gaya hai.aage kya hua hoga ise janane ki ichha barabar barkarar rahti hai.bich-bich me nitipurn bate kaphi kuch sichha deti hai.kuch maghi bhasa ka prayog ise atmiyata pradan karti hai.
es book ko jarur hard copy publish kiya jana chahiye .
kitab ke anusar talak ko kanuni jama pahnaya ja sakta hai, kintu dono pachho me sahmati muskil hogi.phir bachcho ke batwara ko lekar bhi muskil hogi.
kisi kahani ka ant ham apni kalpna se kar to sakte hai.lekin bidhata ke phaisala me bhinnta ho sakti hai.samay sabse balwan hai.
YE BOOK SABHI COUPLE KO EK BAR JARUR PADHNI CHAHIYE.
YE BOOK SAMAJ KO EK NAI DISHA DEGI. PATI- PATNI KE PYAR KO AUR PRAGARDH KAREGI.YE TUTTE RISTE KO JOREGI, JO NAHI JUR SAKTA USE SAHI RAH DIKHAYEGI.
उपन्यास बहुत अच्छा लगा ! पढ़ने से पहले ऐसा लग रहा था कि ये कैसा होगा जब मैंने पढ़ना सरू किया तो मुझे आगे पढ़ने की उत्सुकता बदती गयी ! मुझे पढता देख मेरी पत्नी को भी इंटरेस्ट आने लगा और उन्होंने तीन घंटे मे पूरा उपन्यास पढ़ डाला ! जो इस उपन्यास की रोचकता को बताता है ! मुझे उम्मीद है कि यह समाज को एक मेसेज देने मे अवश्य सफल रहेगा !
Re: रिसते रिश्ते बिखरते परिवार (e-book)
Wonderful novel which have many positive things in a negative issue. It may be guidance to our society and family. It is written in such interesting way that i could not leave reading till the last. Very good novel.I recommend it to every one.