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“कुरुक्षेत्र युद्ध” महाभारत कथा के महायुद्ध का नवीन चित्रण है । अट्ठारह दिनों के भयानक युद्ध की इस कथा को तीन भागों में विभाजित किया गया है और ‘युगान्त’ इसकी पहली कड़ी है । सदियों पहले भारत की भूमि पर लड़े गए इस महायुद्ध के पहले दस दिन अलग अलग राज्यों और देशों के महावीर राजाओं के आपस में लड़ने की इस अद्भुत कथा को लेखक मृनाल राय ने अपनी कल्पना से चित्रों और शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है ।
ये कहानी है उन वयोवृद्ध योद्धाओं की, जिन्होने अपना जीवन एक युग को दूसरे युग में बदलते हुए देखने में लगा दिया और अपने जीवन के अन्तिम पड़ाव पर वे एक युद्ध में अपना शौर्य और दक्षता दिखाने रणभूमि में उतरे हैं । ये कहानी है उन महावीर और शक्तिशाली योद्धाओं की जिन्हे संसार महारथी, अतिरथी, रथियों की श्रेणी में गिनता था, जिनके रथों की गड़गड़ाहट और वीरता की गाथाएं उनके शत्रुओं का हृदय कंपा देने की शक्ति रखती थी ।
ये कहानी है उन युवा योद्धाओं की जो अल्पायु में ही एक ऐसे मेले में भाग लेने चले आए थे जहाँ कब कौन बिछुड़ जाए ये पता नहीं । किन्तु ऐसे वातावरण में भी यदि उन्हे शिक्षा प्राप्त करने का कोई अवसर मिले तो वे छोड़ना नहीं चाहते थे ।
ये कहानी है एक ऐसे रहस्यमयी योद्धा की जो युद्ध में शस्त्र तो नहीं उठाता है किन्तु अपनी नीतियों से शत्रुओं को समाप्त करने की शक्ति रखता है ।
दस दिन के युद्ध में ऐसे ही कईं अनेकों किरदारों के साथ इस कहानी का तानाबाना बुना गया है जिन्हे समाज चाहे नायक कहे अथवा खलनायक, किन्तु सभी वीर थे और मृत्यु के कोलाहल में आनन्द तलाश रहे थे ।
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