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भारत की सभ्यता अक्षुण्ण है। कभी इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था। बाद में विदेशी सभ्यता इस पर हावी हो गई तथा इसे तहस-नहस कर डाली। आज पुनः भारत अपनी गौरव गाथा को प्राप्त करने में जुटा है। इस पुस्तक में दो खंड हैं। खंड एक में उन तथ्यों को दिखलाया गया है, जिससे पता चलता है कि भारत निःसंदेह विश्वगुरु बनने वाला है। विश्वगुरु की राह भक्ति के धरातल पर बनायी गयी है। दूसरे खंड मेें कुछ भक्तिपरक कविताएं हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य यह दिखलाना है कि भारत कभी सोने की चिड़िया कहलाता था। अब पुनः अपनी पुरानी गौरव गाथा को प्राप्त करने वाला है। यह पुनः विश्वगुरु बनने वाला है। कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर यहां प्रकाश डाला गया है।
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