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Sanskrit Dharm (eBook)

Type: e-book
Genre: Philosophy, Religion & Spirituality
Language: Hindi
Price: ₹99
(Immediate Access on Full Payment)
Available Formats: PDF

Description

वेदों में सहचित्ति, समचित्ति, अभिचित्ति की जो उद्घोषणा है, वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलती। इन तीनों अवस्थाओं में मनमानस मनुष्यत्व के उच्चतम शिखरों पर डोलता है। यही विश्व की समस्याओं का हल भी है और इन्हीं की स्पष्ट अभिव्यक्ति ‘संस्कृत धर्म’ है।
प्रसंगवशात्, बच्चों के दो समूहों पर किए गए मनोवैज्ञानिक प्रयोग का उल्लेख पुस्तक की विषयवस्तु को समझने में मददगार होगा। पहले समूह को यह कहा गया कि वे दूसरे समूह को किसी भी स्तर के अच्छे काम के लिए पुरुस्कृत करें और दूसरे समूह को कहा गया कि उन्हें पहले समूह की किसी भी प्रकार की गलतियों के लिए दंडित करें। प्राप्त परिणाम चौंकाने वाले थे। पुरुस्कार देने की बारी पर हर किसी को अच्छे से अच्छे काम पर ‘कम से कम’ पुरुस्कार दिया गया किंतु दंड देने की बारी आने पर छोटी से छोटी गलतियों पर ‘अधिक से अधिक’ दंड दिया गया।
इन दोनों अतियों के बीच में मुझे वह धारा दृष्टिगत हुई कि ‘समझ’ के स्तर को विकसित कर अपराध समाप्त किए जा सकते हैं और यदि गलती हो जाय तो सुधरने के मार्ग अपनाने चाहिए। इसे किसी बहाने की आड़ में नहीं रखना चाहिए बल्कि ‘अपनाए जाने योग्य सिद्धांतों’ को ढंग से समझ बूझ कर ही उनकी चाहत पैदा करनी चाहिए। यही संस्कृतादेश है जिसके द्वारा मनुष्य की लोहा चित्ति को चुम्बकीय चित्ति में बदलकर श्रेष्ठ सुंदर विश्व की रचना की जा सकती है।
भासित संस्कृत आदेशों की प्रभाव शैली दिव्य है। सायास, किंतु निश्छलतापूर्वक ऐसे पुष्पों का चयन किया गया है जिसकी सुगंधि से न केवल जगजीवन सुवासित हो अपितु अमृत मार्ग का दिग्दर्शन भी हो। ‘संस्कृत धर्म’ की इस व्यवस्था में सांकेतिक दंड भी भारी लगते हैं और भरपूर पुरुस्कार भी अत्यल्प क्योंकि इन्हीं कोशिशों में सच्चा पुनरावर्तन छुपा हुआ है। निश्चित ही, यहीं से सर्वशील संस्कृतकील महामानव बनने और बनाने की दहलीज भी आपको मिल सकेगी।

About the Author

Rajesh Kumar Dwivedi
Co-Founder : Sanskrit Order Of Mankind

Book Details

Publisher: Naye Pallav
Number of Pages: 130
Availability: Available for Download (e-book)

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