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वोटवाला, प्रशांत किशोर की चुनावी रणनीति, राजनीतिक गणित और अद्भुत सूझबूझ का वह पहलू है, जिसने बिहार की राजनीति को नई दिशा दी है। बिहार की राजनीति में भूचाल लाने वाले इस शख्स ने न तो किसी पारंपरिक राजनीतिक परिवार में जन्म लिया और न ही किसी बड़े दल की छत्रछाया में अपने सफर की शुरुआत की—फिर भी अपनी बेजोड़ बुद्धिमत्ता और रणनीतिक कौशल से देश के दिग्गज नेताओं को चुनावी जीत का मंत्र दिया।
प्रशांत किशोर को कोई राजनीतिक चाणक्य कहता है, तो कोई इलेक्शन गुरु। लेकिन क्या वे सिर्फ एक चुनावी रणनीतिकार हैं, या उनके पास बिहार की राजनीति को बदलने की असली क्षमता भी है? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए हमें उनके सफर को समझना होगा—आई-पैक से लेकर जन सुराज अभियान तक, और सत्ता के गलियारों से लेकर जनता के बीच तक।
इस पुस्तक के माध्यम से हमने यह प्रयास किया है कि प्रशांत किशोर के व्यक्तित्व, उनकी रणनीतियों और उनके बिहार से जुड़े राजनीतिक मिशन को करीब से समझा जाए। इसमें उनके राजनीतिक दांव-पेंच, उनकी सफलताएं, असफलताएं और भविष्य की संभावनाओं का विस्तृत विश्लेषण किया गया है।
प्रशांत किशोर—भारतीय चुनावी राजनीति के सबसे प्रभावशाली रणनीतिकारों में से एक, जिन्हें अक्सर "मास्टरमाइंड" कहा जाता है—सिर्फ एक साधारण राजनीतिक रणनीतिकार नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से लेकर आधुनिक भारतीय चुनावी रणनीति का पर्याय बनने तक की उनकी यात्रा किसी रोमांचक कहानी से कम नहीं है। लेकिन किशोर केवल आँकड़ों और योजनाओं के इंसान नहीं हैं—वह एक दूरदर्शी हैं, एक ऐसे कथाकार जो ऐसी कहानियाँ बुनते हैं जो मतदाताओं के दिलों में गूँजती हैं।
युवा वर्ग अब खुद को पुराने राजनीतिक तंत्र में प्रतिनिधित्व होता नहीं देखता। वे जाति-आधारित राजनीति, गठबंधन की उठा-पटक और सत्ता बचाने के खेल से ऊब चुके हैं। उन्हें ऐसा नेतृत्व चाहिए जो सिर्फ सत्ता की जोड़-तोड़ में न उलझे, बल्कि सीधे उनके भविष्य को संवारने की बात करे। इस बदलाव की भावना को किशोर ने बखूबी समझा है, और वे खुद को इसी नए दौर के नेता के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।
किशोर का आंदोलन "जन सुराज" इस नई राजनीतिक आकांक्षा को प्रतिध्वनित करता है। उनकी रणनीति जमीनी स्तर पर सीधे जनता से जुड़ने, पारदर्शिता, और तकनीक के इस्तेमाल पर केंद्रित है। वे मानते हैं कि बिहार का भविष्य उसके युवाओं में बसता है और इसलिए उनकी राजनीति का मुख्य एजेंडा शिक्षा सुधार, रोज़गार सृजन, डिजिटल कनेक्टिविटी, और अधिक जवाबदेह प्रशासन पर टिका है। किशोर राजनीति को सिर्फ सत्ता प्राप्ति का खेल नहीं, बल्कि जनता की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब बनाना चाहते हैं।
उम्मीद है कि यह किताब न केवल बिहार की राजनीति के जिज्ञासु पाठकों के लिए उपयोगी होगी, बल्कि उन लोगों के लिए भी प्रेरणास्रोत बनेगी, जो राजनीति को एक नए नजरिए से देखना चाहते हैं।
वोटवाला पीके एक बेहतरीन किताब है। इस किताब को पढ़कर लगता है कि आगामी बिहार चुनाव की दशा और दिशा तय करने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी। लेखक एवं प्रकाशक को बधाई!
बिहार की राजनीति को नई दिशा देने वाली किताब
पहले बिहार में चुनाव आते ही लोग जाति, धर्म, पार्टी/दल आदि में बंटने लगते थे! लेकिन, यह सब कबतक चल पाता। लोग अब इससे ऊब चुके हैं। अधिकांश लोगों का कहना है कि जाति-धर्म की राजनीति ने बिहार को एक पिछड़े राज्य की पंक्ति में ला खड़ा किया है। अब बिहार को इससे निकलना ही होगा और हमें विकास-कार्यों को ध्यान में रखकर ऐसे नेता को चुनना होगा, जो बिहार को आगे ले जा सके और बिहार की पहचान एक विकसित राज्य के रूप में हो सके।
ऐसे में कई लोगों को प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज पार्टी’ से काफी उम्मीदें हैं। इसी बात को आगे बढ़ाती यह पुस्तक निःसंदेह आगामी चुनाव में एक महत्वपूर्ण राह दिखाएगी, ऐसा मुझे लगता है। आप इस पुस्तक को पढ़कर निराश नहीं होंगे, बल्कि महसूस करेंगे कि जो आपके मन में चल रहा है, उसी की वकालत करती है यह किताब।