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"90 के दशक की पीढ़ी: क्या खोया, क्या पाया" पुस्तक 1985–1999 में जन्मी पीढ़ी की जीवन-यात्रा को दर्शाती है, जो दो युगों — पारंपरिक और डिजिटल — के बीच की कड़ी रही है। यह पीढ़ी ब्लैक-एंड-व्हाइट टीवी से लेकर स्मार्टफोन तक, पत्रों से चैटबॉट्स तक और लट्टू से PUBG तक का सफर तय कर चुकी है। पुस्तक बचपन की मासूमियत, असली दोस्तियों, सादगीभरी शिक्षा, पारिवारिक मूल्यों और सीमित लेकिन सार्थक मनोरंजन को आज की तेज़, व्यस्त और तकनीकी दुनिया से जोड़ते हुए गहन विश्लेषण करती है। इसमें मानसिक स्वास्थ्य, सतही रिश्तों और बदलते संवाद के माध्यमों की चर्चा भी की गई है। हर अध्याय "क्या खोया और क्या पाया" की दृष्टि से 90s की पीढ़ी की स्थिति को सटीकता से उकेरता है। निष्कर्षतः, यह किताब उन पाठकों को आईना दिखाती है जो अपने अतीत को याद करते हुए वर्तमान में अर्थ और संतुलन की तलाश में हैं।
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