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प्रस्तुत पुस्तक धरती के मानवों के जीवन को सरल, सहज और सुंदर तथा सार्थक बनाने के लिए अर्थात् 'धरती को स्वर्ग बनाने के लिए कुछ संदेश देती' है जैसे - मानव जीवन की शुरूआत उसके बचपन से होती है इसलिए बच्चों को माता-पिता, गुरुजनों व श्रेष्ठ जनों के प्रति आज्ञाकारी बनाया जाए तो उनमें अन्य सारे गुण स्वतः आ जाएँगे। उनका भविष्य शुरु से ही उज्जवल होगा, परिवार में सुख शांति और ऊँचे संस्कार का वातावरण बनेगा। भाईयों में परस्पर प्रेम और सद्भावना कायम रहेगी। सभी चरित्रवान होंगे और पाप कर्म से दूरी बनेंगी ।
भगवान श्रीराम ने अयोध्या की राजगद्दी त्याग कर 14 वर्ष तक वनवास करके इतना बलिदान, त्याग व तपस्या क्यों किया, आखिर इस त्याग और तपस्या का उद्देश्य क्या था? हम धरती के मानवों के लिए एक बड़ा सवाल है-
वर्तमान में जहाँ पारिवारिक विघटन का दौर चल रहा है उस पर विराम लगेगा।...
भगवान श्रीराम का दुनिया को सन्देश-----
Bhagwan shree ram ka samporna jeevan sabko sath lekar chalne, sabke maan-samman ki chinta karne tatha sabki bhalaie sunischit karen ke prati samarpit raha hai.