You can access the distribution details by navigating to My Print Books(POD) > Distribution
हम सभी इस ग्रह पर बिना किसी पूर्वाग्रह के जन्म लेते हैं । बचपन का समय बहुत ही अनोखा ,कोमल और अनमोल होता हैं क्योंकि यही वो समय होता हैं जब हमें जीवन के उतार चढ़ाव के बारे में कुछ भी पता नहीं होता है। हमारे मस्तिष्क मे स्वार्थ, ईर्ष्या, तनाव, चिंता, भय, पछतावा, क्रोध, प्रतियोगिताओं या कठोर भावनाओं का कोई स्थान या सोच दूर दूर तक नहीं होती हैं । वास्तव में, बचपन जीवन में विपुलता का वास्तविक अर्थ है। धीरे-धीरे जैसे-जैसे बच्चा बढ़ता है और उसे इस दुनिया में जीवित रहने की रणनीति सिखाई जाती है । वह दिन - रात बस अपने जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने के लिए तलाश करना शुरू कर देता है। लेकिन क्या आप सोचते हैं कि वह कभी जीवन के इस जटिल चक्रव्यूह से बाहर आने में सक्षम हो पाता है , शायद कभी नहीं। बल्कि धीरे-धीरे वह इस दौड़ का हिस्सा जाने अनजाने में ही बन जाता है जो दिन बीतने के साथ-साथ तेज़ और तेज़ होता चला जाता है और वह इस जीवन स्वरूपी महाभारत के अभिमन्यु की तरह लड़ते –लड़ते थक- हारकर असहाय हो जाता है । वो दुर्भाग्य से पर्याप्त प्रशिक्षित नहीं था। वह खुद को ऐसी स्थिति में पाता है जहां उसे इस ग्रह पर जीवित रहने या हारने या दूसरे शब्दों में जीवित रहने के अलावा कुछ भी देखने को नहीं मिलता है। इसे ही डार्विन वाद कहते हैं अधिकांश समय हालांकि उन्हें विजेता घोषित किया जाता है, लेकिन वे खुद को एक गहरी हार की बोझ तले दबा हुआ मानते हैं।इस दुष्चक्र को माया कहा जाता है और हमें अपने जीवन की यात्रा में इसे जल्द से जल्द महसूस करना होगा। हमें अपने जीवन के वास्तविक अर्थ और उद्देश्य को भी समझना होगा जिसके लिए हम इस ग्रह पर पैदा हुए हैं। हम इस जीवन को बहुत छोटा पाते हैं और जब तक हम जीवन की इच्छा और आवश्यकता के बीच अंतर करते हैं तब तक यह खत्म हो चुका होता है। मेरा विश्वास कीजिए , यह महसूस करने में आपको ज्यादा समय नहीं लगेगा कि यह अपने अंत पे पहुंच गया है । सबसे अच्छी और मजे की बात यह है कि यह इतनी तेजी से चलता है कि पलक झपकने से पहले ही यह पार हो जाता है और अपने गंतव्य पे पहुँच जाता है । आपको ऐसा लगता जैसे यह बस कल ही की बात है। यह विशुद्ध रूप से हमारे हाथों में है कि हम पूर्ण समर्पण के साथ , बिना कोई शक के , उस सर्वशक्तिमान में विश्वास करते हुए अच्छे कर्म करके अपने जीवन को बेशकीमती बनायें।हम सब जानते हैं कि जीवन बहुत सीमित है और ऐसा ही समय के साथ भी है। हमें स्वीकार करना होगा कि हम समय के खिलाफ नहीं लड़ सकते हैं । यह एक एक बार चला जाता है, तो वापस नहीं आता है। हमें अपने हिस्से के मिले इस बेशकीमती समय के हर सेकंड का उपयोग बहुत समझदारी से करना है। इस भौतिक ब्रह्मांड में मानव शरीर से एक विशाल आकाशगंगा तक, प्रत्येक वस्तु चीजों के एकत्रीकरण के कारण है जो इसकी वर्तमान स्थिति को बनाए रखती है। उनमें से अगर एक को भी बदलते हैं तो सारे समीकरण उस वस्तु, समय और स्थान के परिपेक्ष बदल जाते है। इस प्रकार हम इस दुनिया के रूप में जो अनुभव करते हैं और जिसे हम अपना अस्तित्व मानते हैं ,वह एक सीमित अर्थों और सीमित परिप्रेक्ष्य में सिमटी एक वास्तविकता है। हमारे शस्त्रों के अनुसार सृजन चेतना का नाटक है। यह अपने आप को विभिन्न चीजों में विभक्त करता है और अंत में बिना किसी स्पष्ट और विशिष्ट कारण के सब कुछ अपने आप में वापस ले लेता है । सर्वशक्तिमान ईश्वर किसी विशेष उद्देश्य या इच्छा के साथ कुछ भी नहीं करते हैं। मेरा विशवास कीजिए , दुनिया कुछ भी नहीं है । बस अंतरिक्ष में चेतना का एक मात्र एहसास है। ऐसा लगता है जैसे अज्ञानी की आंखों में एक मृगतृष्णा के रूप में मौजूद है। यही सब माया है जिसके विषय में विस्तार से हम हमेशा से जानने के इच्छुक रहते हैं । ब्रह्मांड की अनंत चेतना और स्पष्ट अस्तित्व के बीच कोई विरोधाभास नहीं है। यह उस व्यक्ति के अद्भुत और अजूबे सपने की तरह है जो वो अवचेतन मन की बंद आँखों से देख रहा है।हमें अपनी ऊर्जा का तर्कसंगत उपयोग करना चाहिए, शांति से, विश्लेषणात्मक रूप से यह स्वीकार करना चाहिए कि जो कुछ भी हो रहा है वह हमारे लिए अच्छा है। यदि परिणाम हमारी इच्छा के अनुसार नहीं हैं तो भी हमें यह समझना और स्वीकार करना होगा कि या तो हमारे प्रयासों में कुछ कमी है या फिर यह हमारी नियति है जो उस सर्वशक्तिमान के आधीन है । सबकी अपनी -अपनी नियति है और इसे बदला नहीं जा सकता है । लेकिन इसे स्वीकार करते हुए हम हमारी दुनिया को बदल सकते हैं। क्योंकि हर किसी के पास कुछ बहुत ही विशेष क्षमता होती है जिसे दृढ़ता से विश्वास से तलाश कर अपने भाग्य की पराकाष्ठा को छू सकते हैं ।
Currently there are no reviews available for this book.
Be the first one to write a review for the book माया.