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माँ को जब हम तू जैसे साधारण से प्रतीत होने वाले शब्दो से प्रेम के आदर के सागर मे डुबोकर बोलते है , तो यह कोई अनुचित नही समझा जाता ! सचमुच , प्रेम की अपनी अलग एक निराली दुनिया है ,एक अलग संसार है ! जब ऐसा ही प्रेम अपने सदगुरु के प्रति सराबोर हो कर छलक पड़ता है तो उस शिस्य का कल्याण हो जाता है ! संत कबीरदास जी ने सत्य ही और अतीव सुंदर कहा है -
जैसी प्रीति कुटुम्ब की तैसी गुरु से होय !
कहें कबीर ता दास को पला न पकड़े कोय !!
जो धानभागी लोग अपने गुरु के प्रति ऐसे ही प्रेम भाव से भरे होते है जो नियमो की सीमा से परे है , कहा जाता है प्रेम मे नेम नही होता ! उन्हीं के लिए जिन्हे ये मार्ग भा गया है और जो इस मार्ग पर आ गया है ! इन काव्य पंक्तियो को उनके कर कमलो में देते हुए अत्यंत आनंद का भाव उमड़ रहा है
२९.१०.२०१२
मनोज कुमार धुर्वे
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