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व्यक्ति के जीवन में उसके कर्मेन्द्रियों एवं ज्ञानेन्द्रियों से परे भी उसके अन्दर कुछ ऐसा है, जिसको न तो वह जान पाता है और न ही पहचान पाता है। किन्तु प्रयत्न निरन्तर करता रहता है। इसी प्रयत्न में वह अनेकों विविध परिणामों को साकार करता है।
"मानस-हंस" अन्तर्मन के रहस्यमयी संसार में होने वाली हलचलों को पहचानने की एक कोशिश है। यह जीवन के अनुभवों के परिणाम स्वरुप अन्तर्मन में उठने वाली भावनाओं एवं अंन्तर्मन से उत्पन्न भावनाओं के परिणाम स्वरुप जीवन में होने वाले परिवर्तन के बीच संबन्धों को उजागर करने वाले ज्ञान का वर्णन प्रस्तुत करता है।
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