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छाया – परछाइयों का कमरा

छाया – परछाइयों का कमरा

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Nitish Pandit 5 months, 2 weeks ago

बहुत जबरदस्त बुक है।

"कुछ कहानियाँ सिर्फ पढ़ी नहीं जातीं... महसूस की जाती हैं। 'छाया – परछाइयों का कमरा' ऐसी ही एक कहानी है।"

यह किताब हमें उस कोने तक ले जाती है जहाँ इंसान अपने सबसे गहरे डर, यादें और अधूरी बातों से आँख मिलाता है। लेखक ने परछाइयों को एक रूप, एक आवाज़ दी है — और वो आवाज़ सीधे दिल को छू जाती है।

क्यों पढ़ें ये किताब?

क्योंकि यह सिर्फ एक कहानी नहीं, एक एहसास है।

इसमें प्रेम है, पीड़ा है, और एक ऐसा सस्पेंस जो आपको अंत तक बाँधे रखता है।

हर पेज पर मानो किसी खोई हुई याद की परछाईं बसी है।


भाषा सरल लेकिन प्रभावशाली है। भावनाएं गहरी हैं लेकिन बोझिल नहीं।
Nitish Tiwari ने इस किताब में वो सन्नाटा बुन दिया है जो अक्सर हम सबके अंदर कहीं छिपा होता है।

> "मैंने उस कमरे में कदम रखा... वहाँ कोई नहीं था, फिर भी वहाँ सब कुछ था — उसकी आवाज़, उसकी खुशबू, उसका सन्नाटा।"



अगर आप 'गुनाहों का देवता', 'रश्मिरथी' या 'अधूरी कविताएँ' जैसी किताबें पसंद करते हैं —
तो 'छाया – परछाइयों का कमरा' आपके लिए एक ज़रूरी पढ़ाई है।

Nitishtiwari 5 months, 3 weeks ago

The best hindi book.

"छाया – परछाइयों का कमरा" एक ऐसी किताब है जो पढ़ते ही मन की गहराइयों में उतर जाती है।
यह सिर्फ एक कहानी नहीं है — यह उन भावनाओं का सफर है जो अक्सर शब्दों के पीछे छुप जाती हैं।

हर पन्ना, हर दृश्य, एक परछाईं की तरह सामने आता है — कभी डराता है, कभी रुलाता है, और कभी अंदर के 'सच' से रूबरू कराता है।
एक खिड़की, एक बच्चा, एक सच... और बहुत सी अधूरी बातें जो इस कहानी में धीरे-धीरे खुलती हैं।

Nitish Tiwari ने बेहद संवेदनशीलता के साथ एक ऐसा अनुभव रचा है, जो मनोविज्ञान, भावना और रहस्य को जोड़ता है।
किताब का माहौल, भाषा और गहराई — सब कुछ मिलकर इसे खास बनाते हैं।

यह किताब उन लोगों के लिए है जो कहानियों में केवल कहानी नहीं, बल्कि आत्मा खोजते हैं।