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चोंचिया पसरले चिहुँक बोले पपिहा

Bhojpuri Lokgeet
Prem Narayan Pankil
Type: Print Book
Genre: Literature & Fiction, Poetry
Language: Hindi
Price: ₹170 + shipping
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Description

लोक में गीत का विविधवर्णी वितान तानने वाली विधा ही लोकगीत है। इसका लालित्य बड़ा ही चितचोर होता है। कीर्ति की, कुल की, काल की, कमनीयता की, करुणा की, कौशल की, कल्पना की, कार्पण्य की, कुटिलता की, विलासिता की, दीनता की- न जाने कितनी अनगिनत कलाओं की इन्द्रधनुषी आभा इस लोकगीत की शिराओं में रुधिर संचार करती है। प्रस्तुत कृति ’चोंचिया पसरले चिहुँकि बोलै पपिहा’ मेरे भावलोक का वह इक्षुदंड है जिसके पोर पोर की रसार्द्रता इसकी गाँठ-गाँठ में समा गयी है। है तो यह रचना ’लोकगीत’ किन्तु सच कहें तो यह ’गीतलोक’ है। इसमें गाँव की पगली गुजरिया भोरहरी में नंगे पाँव बधार घूम आती है, भरसाँय में दाना भुँजवाती है तो लफंगों का लोला भी मलिया देती है। इसमें चन्दा सूरज की जुगल जोड़ी आकाश के तराजू में रत्न बनकर झूल जाती है तो विदा होती बिटिहिनी ओहार उठाकर भइया के गाँव को असीसती है। सुगना-मयनवाँ भारत भूमि की परिक्रमा करने के लिए पंख पसार कर उड़ पड़ते हैं तो ’मोरे पिछुअरिया सघन बँसवरिया में’ विविध चिरई-चूरुमन चहकते हैं, चहलकदमी करते हैं। कमल गुलाब की परस्पर होड़ा-होड़ी होती है तो ऋतुएँ राग-रंग में डूबकर मतवाली हो जाती हैं। अनेक रंगों की रंगोली से सजी हुई यह रचना अपने गाँव की परिक्रमा करने में खूब रमी है, अपने विशद व्योम को भर आँख निहारी है और अपनी प्रकृति की गोदी में खूब ठुनकी है, मचली है।

About the Author

वाराणसी जनपद के पूर्ववर्ती सीमा में स्थित ग्रामीण अंचल के छोटे से गाँव भटपुरवा में जन्म। जीवन के १० वर्ष शिक्षा सम्पादन में बिहार के बक्सर अंचल एवं पाटलिपुत्र में बीते। बी०ए० आनर्स (अंग्रेजी), एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वाराणसी की नागरी प्रचारिणी सभा में एक वर्ष से अधिक की अवधि तक हस्तलिखित संस्कृत ग्रंथों के अनुक्रम एवं परिशिष्ठ लेखन का कार्य। एल०टी० एवं साहित्यरत्न की उपाधि से संयुक्त। पुनः चन्दौली जनपद के सकलडीहा इण्टरमीडिएट कालेज में अध्यापन। अद्यावधि अंग्रेजी प्रवक्ता के कार्य का सम्पादन करते हुए सेवा से अवकाश। साहित्य में काव्य रचनाओं का प्रणयन, यथा ’टेर रहा है मुरलीधर’, ’नौमि गोपाल बालम्’, ’करो भक्ति जिज्ञासा’, गीता भावानुवाद, गीतांजलि काव्यानुवाद, सौन्दर्य लहरी काव्यानुवाद आदि का प्रणयन। लोकभाषा भोजपुरी के क्षेत्र में लोकगीतों का सृजन एवं शैलबाला शतक जैसी काव्य-कृति की रचना। एकांकी नाटकों का मंचानुकूल सृजन। अवकाशोपरांत भी आलोचना एवं समीक्षा कार्यों में संलग्न।

Book Details

Publisher: Prem Narayan Pandey
Number of Pages: 84
Dimensions: 5"x8"
Interior Pages: B&W
Binding: Paperback (Perfect Binding)
Availability: In Stock (Print on Demand)

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