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तुम और मैं

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triambaktiwari 6 years, 11 months ago

Re: तुम और मैं

कविता की सार्थकता तो कवि के लिए अपनी भावनाओं के मूर्त रूप ले लेने से ही हो जाती है, सोने पे सुहागा तो तब है जब पढ़ने वाला भी उसको जी ले जिसके दरम्यान में होने पर लिखने वाले ने उसे लिखा हो। साथी राहुल ने जिस परिपक्वता के साथ अपनी बात को अपनी कविताओं में व्यक्त किया है उससे पता चलता है कि वक्त की आँच में तपे तपाये किसी अनुभवी ने आपबीती को जगबीती बनाया है।

"कर्ज ले रखी थीं कुछ खुशियाँ
मुश्किल के उन दिनों में
हिसाब जरा कर लेने दो
और ब्याज के आँसू पीने दो."

मुश्किलात में कर्ज़े में ली गई खुशी का ब्याज़ आंसुओं के रूप में चुकाना पड़ता है, ये बताता है कि लिखने वाले ने जिंदगी को करीब से देखा है। ऐसे ही कई पाने-खोने, मिलने-बिछड़ने जैसे कई उतार-चढ़ाव को समेटे ये संग्रह संग्रहणीय है, राहुल भाई को बधाइयाँ और शुभकामनाएं!