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सिद्धो की एक पुरात्तन परम्परा है एक भक्ति-मुक्ति प्रदायिनी धारा है जो आदि शिव से आरम्भ हो कर अनेक महात्माओं में प्रवाहित होती हुई आज भी उतनी ही सशक्त व फलदायिनी है सिद्धों की इस अखंड परम्परा के अन्तर्गत श्री गुरू अपने शिष्य को इस परम्परा की शक्ति व अधिकार सोंपते आये है सिद्ध योग में सिद्ध गुरू दृष्टि स्पर्श शब्द या संकल्प के द्वारा शिष्य की सुप्त कुंडलिनी शक्ति को जगा देते है जिसे शक्तिपात कहते है उसके पश्चात इस महायोग की प्रक्रिया स्वत ही आरम्भ होती जाती है गुरू कृपा द्वारा संचालित एवं निर्देषित इस युग में ध्यान योग, भक्ति योग, मुक्ति योग, कर्म योग, ज्ञान योग, मंत्र योग, लय योग व हेतु योग इत्यादि अन्य सभी योग स्वयमेव सध जाते है क्योंकि सिद्ध योग एक सर्वागी पूर्ण योग है।
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