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एक स्त्री का जीवन अपने आपमें ही किसी किताब से कम नहीं होता। सैकडो अधूरे सपने, हजाराें बातें, कई राज और कुछ कहानियां समेटे होती है उसकी जिंदगी। कितना तो होता है उसके पास कहने के लिए किंतु संकोच कहिए या सामाजिक दबाव या बंधनों का दायरा, वे खुद को अभिव्यक्त पूरी तरह कर ही नहीं पाती कभी।
पितृसत्तात्मक समाज में एक आम लडकी इतनी अपेक्षाओं और बंधनों से घिरी रहती है कि पिंजरे में कैद पक्षी भी कुछ मायनों में उनसे बेहतर ही होता है। लेकिन फिर भी खुशकिस्मत हैं आज की लडकियां कि सोशल माीडिया के माध्यम से उन्हें टुकडों में ही सही, थोडा सा तो आसमान मिला। कतरा कतरा ही सही कुछ धूप और हवा उनके हिस्से में आनी शुरू तो हुई नहीं तो न जाने कितनी गुडियाएं गूंगी ही रह जाती।
पुस्तक 'कुछ बातें कुछ किस्से' ऐसी ही एक डिजीटल डायरी है जिसमें एक स्त्री के मन की परतें खुलती हैं, उसकी शिकायतें, उसका नजरिया, उसका प्रेम, उसकी भावनाएं, जिन्हें आलेख, कहानियाें और कविताओं के माध्यम से अभिव्यक्ति दी गई है
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