विजय वल्लरी
वर्जिन
वचनं मधुरम्
लोकतंत्र
लय: फूल और शूल
लम्हे(काव्य कोष)
लकड़ी की काठी 2
लकड़ी की काठी
रेंज
रूह और आबरू ही:
राया
रंग
ये मेरी ख़ामोशी
यादो रे दिवे
यादगार हो तुम
याद बन कर रह गए
यह उन दिनों की नज्म़ है
य र ल व श स ह
मोहब्बत शायरी
मैं चाहता हूं
मैं गीत गाऊँगा ही
मैं कवि नही हूँ कोई