Description
प्राकृतिक तरीकों से हृदय रोग की रोकथाम और उपचार।
हम सभी जानते हैं कि जन्म लेने पर सभी स्वस्थ एवं आनन्द में होते हैं, लेकिन समय के साथ हमारा स्वस्थ एवं आनन्द हमारी गलत आदतों एवं विचारों के कारण हम दुखी एवं बीमार रहते हैं । बीमारी कहीं बहार से नहीं आती है ये हमारी आदतों एवं विचारों के कारण शरीर में पैदा होती है । जब तक हम अपनी मदद, अपना आत्म सम्मान और अपने आप को प्यार करना नहीं सीखेगे, तब तक आप स्वस्थ एवं आनन्द को प्राप्त नहीं कर सकते । इसलिये आपको प्राकृतिक नियमों के अनुसार जीवन जीना पड़ेगा । अगर आप एलोपैथिक के सहारे रहोगे तो इसका मतलब है कि आपने प्राकृतिक नियमों का उलंघन किया है, तो आप पूर्णतया स्वस्थ एवं दीर्धायु नहीं प्राप्त कर सकते हैं । प्राकृतिक ईश्वरीय संरचना है, इसका उलंघन ईश्वर का अपमान है ।
जोड़ों के दर्द और अन्य बीमारियों का प्राकृतिक तरीके से इलाज प्रकृति के मूलभूत नियमों यानी ईश्वर पर आधारित है। यदि प्राकृतिक नियम का उल्लंघन किया गया तो आपको कष्ट होगा।
अगर आप अपने जीवन में हर तरह की खुशियां चाहते हैं, तो आप प्रकृति के करीब रहेंगे। अन्यथा आप विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रसित होंगे और मेहनत की कमाई इलाज पर खर्च होगी।
चिकित्सा उपचार धीमी गति से मरने की प्रक्रिया है। डॉक्टर ने विशेष रोग का उपचार दिया है, इसके साइड इफेक्ट से समय आने पर नई बीमारी पैदा हो जाती है।
अंत में रोगी दर्द से पीड़ित और अपनी मेहनत की कमाई खर्च करने के बाद मर जाएगा।
कृपया नीचे दी गई संत कबीर दास कविता को हमेशा ध्यान में रखें और काम करें और दैनिक आधार पर अपने शरीर की देखभाल करें
झीनी झीनी बीनी चदरिया ॥
काहे कै ताना काहे कै भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया ॥ १॥
इडा पिङ्गला ताना भरनी,
सुखमन तार से बीनी चदरिया ॥ २॥
आठ कँवल दल चरखा डोलै,
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया ॥ ३॥
साँ को सियत मास दस लागे,
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया ॥ ४॥
सो चादर सुर नर मुनि ओढी,
ओढि कै मैली कीनी चदरिया ॥ ५॥
दास कबीर जतन करि ओढी,
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया ॥ ६॥
मेने पहले भी जोड़ों के दर्द और अन्य बीमारियों का प्राकृतिक तरीके से इलाज की पुस्तक लिखी थी जिसकी २०० काफिया बिक चुकी है और लोगो को बहुत लाभ हो रहा है यह पुस्तक भी बेजोड़ है
मैं भगवान सहाय सिंघल एक योग शिक्षक और विशेषज्ञ हूं। मैंने इंजीनियरिंग कॉलेज कोटा से ग्रेजुएशन किया है। मैं वर्तमान में उत्तर पश्चिम रेलवे जयपुर राजस्थान में मुख्य अभियंता के रूप में कार्यरत हूँ। भारत के विभिन्न हिस्सों में 32 वर्षों से अधिक समय से रेलवे में काम करने के बाद, मैं पिछले 15 वर्षों से योग, ध्यान और प्राकृतिक चिकित्सा से जुड़ा हूं और आज तक कोई बीमारी नहीं हुई है। 58 साल के कामकाजी जीवन में मैं लाखों लोगों से मिला हूं, ज्यादातर लोग हर समय अलग-अलग कारणों से तनाव में रहते हैं, मैंने भगवान के बारे में कई लेख लिखे हैं। यह महसूस करने के बाद कि तनाव से बचा नहीं जा सकता है, लेकिन रोजाना योग करने से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
मैं भगवान कृष्ण से मिला हूं, आप मेरे जीवन की यह वास्तविक कहानी इस प्रकार पढ़ सकते हैं:
बातचीत का अनुभव और भगवान कृष्ण के साथ साक्षात्कार
जब मैं गुवाहाटी में मुख्य अभियंता/निर्माण के पद पर तैनात था। तब श्री रामसमुझ उप मुख्य अभियंता/निर्माण/मालदा मेरे अधीन कार्य कर रहे थे, उनके अधिकार क्षेत्र में सभी निर्माण कार्य धनराशि का आवंटन न होने के कारण बंद हो गए थे। तो मैंने उनसे कहा कि मुझे मालदा और कोलकाता के बीच मायापुर में भगवान कृष्ण के दर्शन करने हैं। तो मैं कल रात आऊंगा और सुबह ही सड़क मार्ग से मायापुर चला जाऊंगा। तब श्री रामसमुझ ने कहा कि सड़क मार्ग से यात्रा करने में 14 से 15 घंटे का समय लगेगा, जिससे आपकी वापसी की ट्रेन भी छूट सकती है और आपको बहुत परेशानी और थकान होगी। तो चलिए यह करते हैं कि मालदा से रेल मार्ग से और उसके बाद निकटतम स्टेशन से आप मेरी गाड़ी में मंदिर के दर्शन करेंगे और सड़क मार्ग से लौटेंगे।
इस तरह उसने अपनी कार रामपुर हाट स्टेशन पर भेज दी जो मायापुर मंदिर के पास है। इस तरह हम मालदा रेस्ट हाउस से सुबह 8 बजे रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ने के लिए पैदल जा रहे थे। तो बीच रास्ते में जहां स्टेशन की गंदगी पड़ी है वहां 8 से 12 साल के 7 से 8 बच्चे बैठे थे. बच्चों में से एक ने कहा कि मीना साहब कहाँ जा रहे हैं, तो हमने उनकी ओर ध्यान ही नहीं दिया। हमने मान लिया कि वह दूसरों से बात कर रहा होगा। क्योंकि मेरा दूसरा ट्रिप मालदा में था। इस वजह से मुझे वहां कोई नहीं जानता था। इस तरह हमने उस आवाज पर जरा भी ध्यान नहीं दिया और आगे की यात्रा ट्रेन से तय की गई।
उसके बाद हम दिन में 12 बजे रामपुर हाट से सड़क मार्ग से मायापुर पहुंचे, तब पता चला कि भगवान कृष्ण मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए हैं और शाम 5 बजे के बाद कपाट खुलेंगे तो रामसमुज कहा कि अब तुम दर्शन करोगे तो तुम ट्रेन नहीं पकड़ोगे और तुम्हारा डिब्बा सरायघाट एक्सप्रेस से रात नौ बजे रवाना होगा।
तब हमने उस बच्चे की आवाज पर गौर किया कि “मीना साहब” कहाँ जा रहे हैं, तब पता चला कि यात्रा शुरू होने के समय भगवान कृष्ण मालदा में ही मौजूद थे। भगवान की वाणी का अर्थ था कि तुम मायापुर जाओगे और बिना देखे ही वापस आ जाओगे। जब मुझे बताया गया कि उस वक्त हम तीनों के अलावा कोई नहीं था। लेकिन भगवान ने हमारी बुद्धि में एक परदा डाल दिया कि वह बच्चा किसी और से बात कर रहा है, इस कारण हम ध्यान नहीं दे पाए, यानी हमारा काम इस तरह का नहीं था कि हम सीधे भगवान को देख सकें और बात कर सकें।
इस तरह हम बिना दर्शन किए ही वापस आ गए। तो इस कहानी से यह साबित होता है कि भगवान हमारे जीवन में हर दिन किसी न किसी रूप में मिलते हैं लेकिन हम अपने पिछले कर्मों और इस जीवन के कर्म के भ्रम के कारण उन्हें पहचान नहीं पाते हैं।
उपरोक्त घटना के संबंध में कबीर दास जी ने ईश्वर को मनुष्य के आसपास रहने की बात कही है, लेकिन अज्ञानता के कारण हम गलत जगह खोजते रहते हैं।
कबीर दास जी के दोहे इस प्रकार हैं:
मौको कहाँ ढूंढे है रे बन्दे मैं तो तेरे पास में
ना तीरथ में ना मूरत में ना एकान्त निवास में
ना मंदिर में ना मस्जिद में ना काशी कैलाश में
मौको कहाँ ढूंढे है रे बन्दे मैं तो तेरे पास में।
ना मैं जप मे ना मैं तप में ना मैं व्रत उपवास में
ना मैं क्रियाकर्म में रहता ना ही योग सन्यास
मौको कहाँ ढूंढे है रे बन्दे मैं तो तेरे पास में।
नहीं प्राण में नहीं पिण्ड में ना ब्रह्मांड आकाश में
ना मैं भृकुटी भंवर गुफा में सब श्वासन की श्वास में
मौको कहाँ ढूंढे है रे बन्दे मैं तो तेरे पास में।
खोजि होय तो तुरंत मिलि हौं पल भर की तलाश में
कहैं कबीर सुनो भाई साधो मैं तो हूं विश्वास में
मौको कहाँ ढूंढे है रे बन्दे मैं तो तेरे पास में।
!! जय श्रीकृष्ण !!
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meenabs 89@gmail.com
It is a wonderful book about the heart care so everyone should read and adopted in his daily life.
Lot of information are available about daily life style in this book. Everybody should read it carefully and adopted in his daily life.
Do yoga walking and eating of vegetable and fruit in his daily life.
Medicine canot save for longer life. Eveyone should remain with nature. Love to all and himself.