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लेखक: लक्ष्मी नारायण मिश्रा
प्रकाशन: प्रथम बार 1933 में, यह अंग्रेजी में 2008 में Sahitya Akademi द्वारा प्रकाशित हुआ नाटक है
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विषय और पृष्ठभूमि:
नाटक स्वतंत्रता-पूर्व भारत में सामाजिक और नैतिक दुविधाओं की मनोवैज्ञानिक झलक पेश करता है । इसमें भ्रष्टाचार, लालच और परिवारिक साजिश की पृष्ठभूमि पर केंद्रित कहानी दिखाई गई है।
संक्षिप्त कहानी:
भागवत सिंह अपने भतीजे रजनीकांत का हिस्सा हड़पने की योजना बनाता है।
इसके लिए वह विभाजन मजिस्ट्रेट मुरारी लाल को ₹50,000 की रिश्वत देकर रजनीकांत की हत्या करवाता है।
जब रजनीकांत अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहा होता है, तब मुरारी लाल की बेटी चंद्रकलादत्त विवाह की पोशाक में आती है और पाप की भूगतान के तौर पर उसे अपना सिंदूर रजनीकांत के हाथों से लगाए देती है ।
मनोवैज्ञानिक और साहित्यिक महत्व:
यह नाटक हिंदी साहित्य में अपनी भाषा-शैली और मानवीय भाव-भंगिमाओं के मनोवैज्ञानिक चित्रण के लिए अद्वितीय माना जाता है ।
इसके माध्यम से अपराध-बोध, आत्मा की तड़प और धार्मिक आचरणों की पुनर्स्थापना का गहरा चित्र सामने आता है।
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