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पूरे साल इतनी मेहनत से काम किया, दिन रात एक कर दिए मैंने। सोचा था प्रमोशन तो अवश्य होगा इस अप्रैज़ल में। प्रमोशन नहीं हुआ तो सैलरी तो बढ़ेगी ही बढ़ेगी। लेकिन जून का महीना आ गया। प्रमोशन भी हुए। लेकिन मेरा नहीं। सैलरी भी बढ़ी लोगों की, लेकिन मेरी नहीं।
क्योंकि मैं तो मेहनत करता था। चुपचाप अपने काम पर ध्यान देता था। कभी इधर उधर की बातों पर मैंने ध्यान नहीं दिया । मुझे क्या मतलब लोगों के साथ गॉसिप करने से कि किसने क्या किया? किसके साथ क्या हुआ?
मैं तो नौकरी करता हूं तो अपने काम पर फोकस करूंगा ना? काम पर ध्यान दूंगा ना?
यही सोचते हैं अधिकतर लोग नौकरी करते समय और अत्यधिक परिश्रम और ईमानदारी से काम करने के बावजूद वह कॉरपोरेट लैडर में ऊपर नहीं जा पाते, कॉर्पोरेट जगत की सीढ़ियां नहीं चढ़ पाते।
कारण? ऑफिस नीति!
वह ऑफिस नीति नहीं जो कॉरपोरेट एथिक्स में लिखी है, या फिर ऑफिस की स्टैंडर्ड पॉलिसी है। नहीं! यह एक अलिखित कॉरपोरेट पॉलिटिक्स है। एक अलिखित नीति है। जो कहीं भी लिखी नहीं है लेकिन सभी जगह व्याप्त है।
यही है वास्तविक ऑफिस नीति। ऑफिस में सरवाइव करने का फॉर्मूला!
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