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Title:- सिद्धशिला Sub Title:- जातिस्मरण
प्रिय पाठकों,
आचार्य श्री कुन्द-कुन्द विरचित, कविवर पंडित बनारसी दास जी द्वारा अनुवादित समय-सार के अनुसार जीव पदार्थ निश्र्चय नय से एक रूप है और व्यवहार नय से गुणस्थानों के भेद से चौदह प्रकार का है। जिस प्रकार श्र्वेत कपडा रंगो के संयोग से अनेक रंग का हो जाता है, उसी प्रकार मोह और योग के संयोग से संसारी जीव में चौदह अवस्थाऐं (Stage) पायी जाती हैं।
जैन मत के अनुसार पंचम काल में भरत क्षेत्र से व्रती गृहस्थ श्रावक अथवा व्रती गृहत्यागी साधु सातवें गुणस्थान तक पहुँच सकते हैं। व्रती का अर्थ उपवास आदि नही अणुव्रत, महाव्रत आदि से है !
अपने अनुभव के आधार पर पहले सात गुणस्थानों का और अध्ययन के आधार पर बाकी सात गुणस्थानों का संक्षेप में लेख लिख रहा हूँ।
सिद्ध शिला को लिखने का आधार निम्लिखित शास्त्र जी हैं।
• समयसार, श्री कुन्द-कुन्द आचार्य, कविवर बनारसी दास ।
• तत्वार्थ सूत्र, श्रीमद उमास्वामि विरचित।
• रत्नकरण्ड श्रावकाचार, आचार्य श्री समन्तभद्र, पधानुवादकर्त्री श्री ज्ञानमति माताजी।
• गोम्मट सार जीवकाण्ड, आर्चाय कल्प पण्डित - प्रवर टोडरमल जी द्रारा रचित!
कुछ समय से अवघि ज्ञान और जातिस्मरण को लक्ष्य मानकर शास्त्रों का अघ्ययन कर रहा था, मुझे जो भी आध्यात्मिक उपलब्धि हुई है, इस पुस्तक मे लिख दिया है।
इस पुस्तक में 72 पेज, 30501 अक्षर, 27 चित्र है। आशा है कि पाठक इससे धर्म लाभ लेंगे।
राजेश कुमार जैन पुत्र स्व श्री श्री पाल जैन, मुरादाबाद, यू.पी, भारत !
Re: सिद्धशिला
Jāti-smaraṇa jñāna in Pancham Cal
जैन मत के अनुसार पंचम काल में भरत क्षेत्र से व्रती गृहस्थ श्रावक अथवा व्रती गृहत्यागी साधु सातवें गुणस्थान तक पहुँच सकते हैं। व्रती का अर्थ उपवास आदि नही अणुव्रत, महाव्रत आदि से है !